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________________ [२०] ही में दिए गए हैं। और नीचे उनका हिन्दीमें अर्थं दिया गया है। श्री हेमचन्द्राचार्य एक महान आचार्य हुए हैं। कुमारपाल इन्हींके उपदेशसे जैन बना था ; इन्हींकी प्रेरणासे उसने गुलरातमें जैनधर्मका प्रचार किया था और अमारी घोषणा कराई थी । आचार्यश्रीका प्रतिभा अद्वितीय थी। इसीसे उन्होंने सर्व विषयोंके अन्य लिखे हैं। उनके विस्तृत ज्ञानके कारणही लोगोंने इनको कलिकाल सर्वज्ञकी उपाधि दी थी। पाश्चात्य विद्वानोंने भी इनको महान विद्वान माना है। प्रोजेक्रोवीने परिशिष्ट पर्वक्री प्रस्तावनामें लिखाहै, "शब्दानुशासनके समान महान व्याकरणके रचयिता, अभिवान चिंतामणिके समान महान कोशके बनाने वाले, छन्दानुशासन के समान पिंगल ग्रंथ के प्रणेता और काव्यानुशासनके समान काव्यका निमाण करनेवालेकी विद्वत्ता किसी भी तरहकी भूलोंको दूर करनेके लिये काफी थी 1x x x x हेमचन्द्राचार्थने यह अन्य बड़ीही चतुराईसे लिखा है। अपनी कथा पाठकोंके सामने रखने उन्हें पूरी सफलता मिली है । इससे अच्छे अन्य होनेकी प्रसिद्धि पाए हुए प्रन्योंकी तरहही पाठक इस प्रन्यको (त्रिषष्टि शताका-पुनय-चरित्रको) उत्साह और आनंदसे पढ़ेंगे।" राव्यसंचालनकी हरेक बात पर ध्यान देनेवाले, हररोज राज्यसभा जानेवाले और इतना होते हुए भी सतत अन्यरचना करनेवाले असाधारण युद्धिमान, इस कलिकाल में सर्वज्ञ के समान मान गए मूरिजीने जो अन्य रचे हैं वे सचमुचही जनसमाजकी महान निधि है। इस निधिकी रक्षा करना और
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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