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________________ [१६] त्रिषष्टि-शलाका-पुरुषचरित्र महाकाव्य है; इसलिए इसमें महाकाव्यके लक्षणके अनुसार त्रातुओका वर्णन,नायक-नायिका वर्णन, देश नगरादिका वर्णन और युद्धका वर्णन और प्राकतिक दृश्योंका वर्णन आदि हैं। यह ग्रन्थ'गुजरातके राजा कुमारपालके आग्रहसे कलिकाल सर्वज्ञके नामसे ख्यात श्रीमद् हेमचन्द्राचार्यने संस्कृतपद्यों में लिखा था। आचार्यश्रीने दसवें पर्वकी प्रशस्तिमें लिखा है, "कुमारपालने एक बार श्रीआचार्यसे नम्रतापूर्वक कहा, हे स्वामी आप निष्कारण उपकारक हैं । मैंने आपकी आज्ञासे नरकगति के आयुष्यके निमित्तकारण शिकार, जुन्मा, मदिरापान इत्यादि दुर्गुणोंके आचरणों का निषेध किया है। पुत्रहीन मरे हुए आदमी का धन लेनाभी मैंने छोड़ दिया है और पृथ्वीको मैंने अरिहंतों के चैत्योंसे सुशोभित किया है, इसलिए मैं वर्तमानमें संप्रति गजाके समान हूँ। पहिले मेरे पूर्वज सिद्धराजकी प्रार्थनापर आपने वृत्ति सहित सिद्ध हेम व्याकरण' की रचना की थी। मेरे लिए भी आपने 'योगशास्त्र' की रचना की थी। सामान्य जनताके लिए भी आपने 'द्वाश्रय काव्य ' 'छन्दानुशासन' 'काव्यानुशासन''अभिधान चिंतामणिकोश' वगैरा अनेक ग्रन्थ लिखे हैं। यद्यपि आप सदा लोककल्याणके काम करते रहते हैं तथापि मेरी प्रार्थना है कि आप मुझ जैसे अल्पज्ञ लोगोंके लिए त्रिषष्टि-शलाका-पुरुष-चरित्र लिखें। .: ... इसी ग्रन्थके पहले और दूसरे पौंका यह हिन्दी अनुवाद है। जैनधर्म प्रसारक सभा भावनगर द्वारा प्रकाशित मूल और उसके गुजराती अनुवादसे यह अनुवाद किया गया है। सभाका मैं कृतज्ञ हूँ। मूलमें जो सुभाषित आए हैं वे सभी मूल संस्कृत
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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