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________________ . सागरचंद्रका वृत्तांत . . [ १७१ से बनाए हुए विचित्र रत्नके हारों और अर्द्धहारोंसे व्याप्त और सोनेके.सूर्यके समान प्रकाशित श्रीदामगंड (झूमर) भी प्रभुकी नजरको आनंदित करने के लिए,आकाशके सूर्यकी तरह, अपरके चंदोवेमें लटका दिया। फिर उसने कुबेरको आज्ञा दी कि बत्तीस करोड़ हिरण्य (कीमती धातुविशेष), बत्तीसकरोड़ सोना, बत्तीस नंदासन, बत्तीस भद्रासन, और दूसरे मनोहर वस्त्र इत्यादि मूल्यवान पदार्थ-जिनसे सांसारिक सुख होता है-स्वामीके भुवनमें इस तरह बरसाओ जिस तरह बादल पानी बरसाते है।" (६१०-६२२) . कुबेरने आज्ञा पातेही चंभक जातिके देवोंसे कहा और उनने इंद्रकी आज्ञाके अनुसार सभी चीजें बरसाई। कारण "याज्ञाप्रचंडानां वचसा सह सिद्ध यति ।" [प्रचंड-शक्तिवान पुरुषोंकी आज्ञा वचनके साथही सिद्ध होती है ।] फिर आभियोगिक देवोंको इंद्रने आज्ञा दी, "तुम चारों निकायके देवोंको सूचना देदो कि जो कोई प्रभुको अथवा उनकी माताको हानि पहुँचानेका विचार करेगा उसका मस्तक अर्कमंजरीकी तरह सात तरहसे छेदा जाएगा । गुरुकी आज्ञाको शिष्य जैसे ऊँची आवाजसे सुनाता है वैसेही उन्होंने भुवनपति, व्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवोंमें इंद्रकी आज्ञाकी घोषणा १-दस तरहके तिर्यगभक देवता हैं; वे कुवेरकी श्राज्ञामें रहनेनाले हैं। २-यह एक तरहकी मंजरी है। जब थह पककर फूटती है तब इसके सात भाग हो जाते हैं।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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