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________________ १५] त्रिषष्टि शलाका पुश्य-चरित्रः पर्व १. सर्ग २. फिरसे प्रारंभ करेंगे हे प्रभो ! आपकी बर्मदेशना तो दूर रही, वल श्राप दर्शनही प्राणियाँका कल्याण करनेवाले है। है भत्रनारक (संभारको तारनेवान) ऐसा कोई नहीं है जिससे आपकी तुलना की जाए इसलिए मैं कहता हूँ कि आपके समान प्रापही है। अब अधिक स्तुति ? ईनाथ ! मैं आपके मथनाय (सत्य अयचो बनानेवाल) गुणोंका वर्णन करने भी अनमयं हूँ। कारण, स्वयंभूरमण सके जलको कौन माप सकता है ? (३-६० इस तरह जगलतिची स्तुति कात्र, प्रमोद (खुशी से जिसका मन सुगंधमय (श) या है ए शद्रने पहीत्री तरह पाँच न बनाए । उनसे अयमादी एक बस उसने शानेंद्रकी गोदी, रहस्यची तरह जगत्यतिको अपने सीनियर लिया स्वानीची नेत्रानो जाननवाजे उस दस कप,नियुक्त चिए हुए नारीवरह, पहलेची तरहही अपना अपना आन कग्ने जंग। फिर अपने देवताओं सहित देवताओंका नेता शद्र, वहाँ अाशंकर, मन्दबाये अहंछन नंदिर (महल) में आया। वहाँ, माता पाल सन पुतज्ञा पत्रा था उसे उठा लिया और प्रमुत्री सुना दिया। इन मन्देवी माताकी अवस्वापिनी निनाइसी तरह दरअर जिस तरह सूर्य कमलिनीकी निद्राको दूर करता है। चरितानयर ई हम हंसनाला बिलानो धारण करनेवाला उजला, दिव्य और शनी बड़ा एक जोड़ा उसने मुझे सिरहाने रखा। चरनमें भी, ब्लन हुपमामंडनची कल्पना करानेवाली रत्नमय इंदनी जोड़ी भी बसनं प्रमुझे सिरहाने रन्नी ! मी तरह मान प्राकार (दीवार)
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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