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________________ १४२] त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्रः पर्व १. सर्ग २. नामक्री आठ दिशानुमारियाँ प्रमोद (श्रानंद) ने उनको प्रेरित क्रिया हो वैसे, प्रमोद पाती हुई वहाँ पाई और पहले श्राई हुई दिशाकुमारियोंकी तरह जिनेश्वर और उनकी माताको नमस्कार कर, अपना काम बता, हाथोंमें कलश ले गायन गाती हुई दक्षिण दिशामें खड़ी हुई । (२६०-२६२) ___पश्रिम मंत्रक पर्वतमें रहनेवाली इलादेवी, मुरादेवी, पृथ्वी, पद्मवती, एकनासा, अनवमिका, भद्रा और अशोका नामकी अाठ दिशाकुमारियाँ इस तंजीम वहाँ थाई मानो वे भक्त्तिसे एक दुसरेको जीतना चाहती है और वे पहलवालियोहीकी तरह भगवानको व माताको नमस्कार कर, श्रानका कारण बता, हायों में पग्ने ले गीत गाती हुई पश्चिम दिशा में खड़ी हुई। (२६३-२६५) उत्तर कचक पव॑नसे अलंबुसा, मिश्रकेशी, पुंडरीका, वामपी, हासा, सर्वप्रमा, श्री और ही नामकी आठ दिशाकुमारियाँ श्रामियोगिक देवताओंके साथ इस धंगके साथ रथोंमें श्राई मानो रथ वायुकाही रूप हो। फिर वे भगवानको तथा उनकी माताको पहल थानेवालियाहीकी तरह, नमस्कार कर, अपना काम बता, हाथोंमें चवर ले गीत गाती हुई उत्तर दिशा में · खड़ी रहीं। (२९६-२०) विदिशा मचक्र पर्वतसे चित्रा, चित्रकनका, सतरा और सौत्रामणी नामकी चार दिशाकुमारियाँ भी वहाँ श्राई। बै पहनेवालियोकाही तरह जिनश्वरको तथा माताको नमस्कार कर, अपना काम बना, हाथमें दीपक ले ईशान श्रादि विदिशाओम, गीम गानी हुद, यही हुई। E-00) -
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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