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________________ ' सागरचंद्रका वृत्तांत [१४१ कर दिए। फिर, वे संवर्त वायुको रोक, भगवानको प्रणाम कर गीत गाती हुई उनके पास बैठीं। (२७३-२८०) उसी तरह आसन काँपनेसे प्रभुके जन्मको जानकर, मेघकरा मेघवती, सुमेघा, मेघमालिनी, तोयधारा, विचित्रा, वारिपेणा और बलाहिका नामकी, मेरुपर्वतपर रहनेवाली आठ ऊर्ध्वलोकवासिनी आठ दिशाकुमारियों वहाँ आई और उन्होंने जिनेश्वर तथा जिनेश्वरकी माताको, नमस्कार करके, स्तुति की। उन्होंने भादोंमासकी तरह तत्काल आकाशमें बादल फैलाए; उनसे सुगंधित जलकी बारिश करके सूतिकागृहके चारों तरफकी, एक योजनतककी रज ऐसे नाश करदी जैसे चाँदनी अँधेरेका नाश करती है; घुटनोंतक पचरंगी फूलोंकी वर्षा करके भूमिको इस तरह सुशोभित कर दिया मानों वह अनेक तरहके चित्रोंवाली है। फिर वे तीर्थंकरके निर्मल गुणोंका गान करती हुई और बहुत बढ़े हुए आनंदसे शोभती हुई अपने उचित स्थानपर बैठीं । (२८१-२८६) - दक्षिण रुचकाद्रिमें रहनेवाले नंदा, नंदोतरा, आनंदा, नंदिवर्धना, विजया, वैजयंती, जयंती, और अपरातिजा नामकी आठ दिशाकुमारियाँ भी ऐसे वेगवान विमानोंमें बैठकर आईं जो मनकी गतिके साथ स्पी करते थे। वे स्वामी तथा मरुदेवीमाताको नमस्कार करके, पहलेकी देवियोंकी तरह कहकर और अपने हाथोंमें दर्पण लेके मांगलिक गीत गाती हुई पूर्व दिशाकी तरफ खड़ी हुई । (२८७-२८६) . . . दक्षिण रुचकादिमें रहनेवाली, समाहारा, सुप्रदत्ता, सुप्रबुद्धा, यशोधरा, लक्ष्मीवती,शेपवती,,चित्रगुता और वसुंधरा अपने उचित स्थाननेवाले नंदा, नामकी
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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