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________________ १३. त्रियष्टि शलाका युनय-चरित्र पर्व १. सर्गर इस तरह सभी इंद्र सपनोंका फल यता, नन्देवी माताको प्रणाम कर,अपने अपने बयानोंको गणास्वामिनी मनदेवी माना स्वप्नफलकी व्याख्यानपी उपासे नींत्री जाकर ऐसी प्रफुल्लित हुई जैसे जमीन बरसात के पानी से सींची जानेपर प्रचल्लिन होती है। (२४०-२५०) महादेवी मनदेवी उन गर्मसे ऐसी शोमने लगी जैसे सूरतसे मेघमाला (बादलोंकी कतार ) शोमनी के मोतीसे सीप शोमनी है और सिंहसे पर्वतकी गुफा शोमती है । प्रियंगु (राई के समान श्यामवर्णवाली होनेपर मी, गमक प्रभावसे ऐसें पीने वर्णवाली हो गई जैसे शरदऋतुस मेयमाला पीले रंगवाली हो जाती है । उनके स्तन मानों इस वर्ष से उन्नत और पुष्ट हुए कि नगवके स्वामी हमारा पयपान करेन-दूध पिणी । उनकी श्रान्ले विशेष विनित हुई नानों वे मगवानका मुख देलनक लिए पहलेहीसे उत्कंठिन हो रही है। उनचा नितंब, (कमरसे नीचा माग) यद्यपि पहनही बनाया तो मी वाचाल बीतनपर.नं नदी किनारंगी जमीन विशाल होती है वसही विशाल हुआ। उनकी चाल यद्यपि पहलहा मंद थी पर अब वह ऐसी हो गई थी वैसे नदमन्त होनेपर दायीनी चाल हो जाती है। उनकी लावण्यलक्ष्मी (मुंदरतामी लक्ष्मी) गर्म प्रमावस इस तरह वहन लगी र संवरे विद्वान मनुथ्यकी त्रुद्धि बढ़ती है या नीम ऋतु, नमुनकी बेना (मामा) बढ़ती है। यद्यपि उन्होंने तीनजोक मारल्य गमको धारण किया था तो मी उनको कोई तकलीक नहीं होती थी; चारण, गर्मवानीअईतोंका ऐसा ही प्रभाव है। पृथ्वीचे अंतरमागमें जैसे अंकन बढ़ता है
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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