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________________ १३६ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पत्र १. मर्ग २. रात अंदमें, सपनों के समाप्त होनेपर खिले हुए मुखवाली स्वामिनी ममदेवी, कमलिनीकी तरह,प्रबोध पाई (जागी) मानों उनके हृदयमें हर्ष समाता न हो इससे, उन्होंने अपने सपनकी सारी ठीक ठीक बातें कोमल अक्षरोंसे वार करती हों (बोलती हों) बैंस नाभिरानाको कह मुनाई। नामिराजाने अपने सरल स्वभावको शोमा दे इस तरह सपनोंका विचार करके कहा, "तुम्हारे उत्तम कुलकर पुत्र होगा।" (२५-२६) उस समय इंद्रोंके श्रासन कोप, मानो वे यह सोचकर नाराज हुए हो कि स्वमिनीने केवल कुलकर उत्पन्न होनेकीही संभावना की है, यह अनुचित है।हमारे श्रासन अचानक क्यों काँपे ? ऐसा (प्रश्नकर.), उपयोग देनेस इंद्रोंको कारण मालम हुआ । ( पहलमे किए हुए) संकेत के अनुसार, जैने मित्र एक जगह जमा होने हैं वैस, सभी इंद्र मित्रों की तरह जमा होकर, सपनाका अर्थ बतानके लिए भगवानकी माताके पास श्राए । फिर वे हाथ जोड़कर विनयपूर्वक इस तरह सपनोंका अर्थ (फल) समझाने लगे, जैसे वृत्तिकार (व्याच्या करनेवाला ) सूत्रोंका अर्थ सष्ट करके (खोलकर) समझाना है 1 (२३०-२३३) - वे कहने लगे, "हे स्वामिनी ! आपने पहले सपने में वृषम (बैल) देखा इससे अापका पुत्र मोहरूपी कीचड़में फंसे हुए धर्मरूपी रथका उद्धार करने में सफल होगा । हे देवी ! हाथीको देखनेसे श्रापका महान पुरुषोंका भी गुरु और बडुन बलका एक स्थानरूप होगा(बहन बलवान होगा)। सिंहको देखनेसे श्रापका पुत्र पुन्यों में सिंह जैसा धीर, निर्मय, बोर और अस्खलित (कम नहीं होनेवाले ) पराक्रमवाला होगा । हे देवी! आपने सपने में
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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