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________________ १२२ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. सर्ग २. प्रियदर्शनाने भी यह सोचकर अशोकदत्तकी बात अपने पतिसे नहीं कही कि मेरे कारण मित्रोंमें कोई जुदाई न आवे । (१०६) सागरचंद संसारको दिखाने के समान मानकर सारी धन-दौलत दीनी और अनाथोंको देकर उन्हें कृतार्थ-निश्चित करने लगा। समयपर प्रियदर्शना सागरचंद्र और अशोकदत्त ये तीनों अपनी अपनी उमें पूरी कर परलोक गए । (१०७-१०८) सागरचंद्र और प्रियदर्शना, इस जंबूदीपमें, भरतक्षेत्रके दक्षिण खंडम, गंगा-सिंधुके मध्यप्रदेशमें, इस अवसर्पिणीके तीसरे पारमें पल्योपमका श्राठवाँ भाग बाकी रहा था नव युगलिया रूपमें उत्पन्न हुए। (१०६-११०) .. पाँच भरन और पाँच ऐरावत क्षेत्रांम समयकी व्यवस्था करनेका कारणरूप बारह पारोंका एक कालचक्र गिना जाता है। बह काल अवसर्पिणी और उत्सर्पिणीके भेदसे दो तरहका है। अवसर्पिणी कालके छः प्रारं हैं । वे नाम सहित नीचे दिए जाते है: १. एकांत मुपमा- यह पारा चार कोटाकोटि सागरोपमका होता है। २. सुपमा यह तीन कोटाकोटि सागरोपमका होता है। (१) चूद्री एक, धातकी ग्लंडमें दो और पुष्कराई में दी इस तरह पाँच भात और पाँच ऐरावत क्षेत्र जानने चाहिए । (२) अयसुपिणी इतरता । (३) उरसपिग-चढ़ता।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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