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________________ दसवाँ भव-धनसेठ [ १०५ - - - २४. संमिनीत लब्धि-इससे एक इंद्रीसे दूसरी इंद्रियोंके विपयों का ज्ञान भी प्राप्त किया जा सकता है। २५. जंघाचारण लब्धि-इस लब्धिवाला एकही कदममें जंबूद्वीपसे रुचकद्वीप पहुँच सकता है; और लौटते समय एक कदममें नंदीश्वर द्वीप और दूसरे कदममें अबूद्वीप यानी जहाँ से चला हो वहीं पहुँच सकता है। और अगर ऊपरकी तरफ जाना हो तो एक कदममें मेरु पर्वनपर स्थित पांडक उद्यान में जा सकता है व लौटते समय एक कदम नंदनवन में रख दूसरे कदममें जहाँसे चला हो वहीं पहुँच जाता है। २६. विद्याचारण लब्धि-इस लब्धिवाला एक कदममें मानुपोत्तर पर्वतपर, दूसरे कदममें नंदीश्वरद्वीप और तीसरे फदगमें रवाना होनेकी जगापर पहुँच सकता। और उपर जाना हो तो जघाचरणसे विपरीन गमनागमन (जाना आना) फर सकता। ये सारी लब्धियां वनचादि मुनियों के पास थी । इन अलाया पासीविष लधि और दानिलाभ पहुंचाने वाली कई - - - -मलपिया.! मी निमसे सुन सकता है दियों के नियोको मागमा साइन होता; शमी (ER) म. सोमrest in En पर है। :- 1 :
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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