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________________ १४] त्रिषष्टि शलाका पुनम-चरित्रः पत्र १. वर्ग १. __ '३० वागवली लब्धि-इसमें एक मुल मुलाहर गिननी चान्नासे नारे शान्त्रका पाठ किया जा सकता है। ___ २१ कायवली लन्धि-इनले त समयक योलग कर निनाची दह स्थिर रहनयर भी थकान नहीं होती है। २२. अमृत-झीरमध्चाच्याश्रति लधि-इल पात्रमें पड़े म ऋल्लिन-वगाव ऋगने भी ऋत, हार, मधु और बी वगैगचा रस आता है और कुन्नी पीड़ित लोगोंची इन लविवानेत्री बानी अनर मधु और बी जैदी शादि देनवाली होती है। २२. अमीण महानतीलविइन पात्र में पड़े हुए अन्नमें से कितनाही दान दिया जानवर भी वह अन्न चायन रहता है. समान नहीं होता है। २३. अभीणमहालय लचि- इन तीर्थयात्री पर्याची दह थोड़ी जगहने भी अन्य प्राणियों दिया जानता है। *१६,२०,२२वायटीनविय तगमयपगाने प्रगट होती है। १- छन्दि गेटमन प्रवर्थी, इसरि उन्होंने क. पार पत्रलाई ईन्दर नदीकाका गया था।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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