SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ __ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्र: पर्व १. मर्ग १. - - दहीके नंतु जैसे लाख पुट पर तैर कर आनाते हैं वैसेही कीड़े ढके हुए रत्नकंवलपर आगए और उन्होंने उनको पहलेकीही तरह गायके मुरदे पर डाल दिया। वाह ! वैद्यकी यह कैसी चतुराई है ! फिर जीवानंदने गोशीपचंदनके रसकी धारासे मुनिको इस तरह शांत किया जैसे गरमीके मौसमसे पीड़ित हाथीको मेघ शांत करता है। थोड़ी देर बाद उन्होंने तीसरीवार लक्षपाक तेल की मालिश की। इससे हड़ियों में जो कीड़े रहे थे घे भी निकल थापा कारण, जब बलवान पुरुष नारान होता है तब वनके पिंजरेमें भी रक्षा नहीं होती। वे कीड़े भी पहलेहीकी तरह रनवलपर लेकर गायके मुरडेपर डालदिए गए। ठीकही कहा गया है कि '"....."अघमस्थानं अघमानां हि युज्यते ।" __[बुरे के लिए बुरा स्थानही चाहिए । ] फिर उस वैद्यशिरोमणिने परममक्ति के साथ से देवको विलेपन किया जाता है वैसेही, मुनिको गोशीपचंदन रसका विलेपन किया। इस तरह दवा करनेसे मुनि निरोग और नवीन कांतिबाले हुए) और मार्जन की हुई-उजाली हुई सोनेकी मूर्ति जैसे शोमती है वैसे शोमने लगे। अन्तमें उन मित्रोंने क्षमाश्रमणसे क्षमा माँगी। मुनिमी वहाँसे बिहार करके दूसरी जगह चलेगए । कारण, वैसे साधुपुरुष कमी एक जगहपर नहीं रहते । (७६०-४४) फिर बोहुए गोशीर्षचंदन और रस्नकंचलको वेचकर उन बुद्धिमानोंने सोना लिया और उस मोनेसे तथा दूसरे अपने सोनसे (जिसे वे गोशीपचन्दन और स्वर्णकंबल के लिए देना चाहते थे) मेरके शिखर जैसा लिनचैत्य बनवाया। जिन
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy