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________________ .७ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. सर्ग १. चित्रपटको खोलकर पंडिता राजमार्गमें खड़ी रही। जानेवालोमें से कई शाम्रोंकी बातें जाननेवाले थे इसलिए वे आगमके अर्थ के अनुसार चित्रित नंदीश्वरद्वीप वगैराको देखकर उसकी स्तुति करने लगे। कुछ लोग श्रद्धासे अपने सर हिलाते हुए उसमें चित्रित श्रीमत अरिहंतके हरेक विवका वर्णन करने लगे। कलाकौशल के पंडित राहगीर-बारीकीसे चित्रोंकी रेखा आदिकी वास्तविकता जानकर बार बार बखान करने लगे। और कई लोग काला, सफेद, पीला, नीला और लाल रंगोंसे संध्याभ्र (शामके बादल ) के समान, उस पटके अंदरके रंगोंका वर्णन करने लगे । (३६-६५४) इतनेहीमें नामके समान गुणवाला दुर्दर्शन नामके राजाका दुद्रात नामक पुत्र वहाँ आया । वह कुछ क्षण पटको देखता रहा और कपट कर जमीनपर गिरा और बेहोशसा हो गया। फिर वापस होशमें आया हो वैसे वह (धीरे धीरे) उठा। उठने पर लोगोंन उसको बेहोश होनका कारण पूछा । वह ऋपट नाटक करक इस तरह अपना ( मृला)नि सुनान लगा। (३५५-६५७) "इस पटम किसीन मेरे पूर्वजन्मका हाल चित्रित किया है। उसको देखनसे मुझ पूर्वजन्मका बान हुआ है । यह में ललितांगदेव हूँ और यह मेरी देवी स्वयंप्रभा है। इस तरह उसमें जो जो बात चित्रिन थीं वे बातें उसने बताई।" पंडिताने कहा, "यदि ऐसा है तो इस पटमें लो जो स्थान है उनको अँगुली लगन्तकर बताओ।"
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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