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________________ और ईश्वरके कामको अपने हाथमे लेता है। यह तो महान नास्तिकता और काफिरपन है। (२) यदि ऋणके विचारको गग्मुस लाता है, तो मुख्य-रण वह है जो ईश्वरकी पोरसे जीवपर लगाया गया है कि 'मुझको ठोक-ठोक जानो' इस ऋणके न चुकाने करके उसके व्याजव्याजम हो यह समारिक-ऋण मिरपर बढ़ते जा रहे हैं, जिनका पूरा-पूरा चुकाना ही कठिन है ।यदि किमी अंशमै चुकाया भी गया तो सञ्चित-कर्माका अनन्त भण्डार भरा पड़ा है जिमका चुकाना तो असम्भव ही है। परन्तु जब हम इस मुख्य-ऋणको चुका जायेंगे तो आँखे खोलते-खोलते चे सत्र ऋण आप पूर हो जायेंगे और 'त्याग' ही इस ऋणकी अदायगी है। ___ (३) यदि शरीरका विचार करता है तो अमरपटा तो लिख कर लाये ही नहीं हैं और वास्तवमै तो मरनेसे पहले ही मरना यही अमर होना है। इस लिये छोड दो इस शरीरकी आशाको, इसकी बलि दे दो उस वेनाम पर । मर्जी हो तो वह अपने शरीर की सेवा करे। उठ खड़ा हो, क्या मसाररूपी सरायमें डेरे डाले पड़ा है ? यहाँ कोई माँ तो वैठी ही नहीं, देख सिरपर काल मँडरा रहा है। सुख चाहता है तो चल रामके धामको। उठ जाग मुसाफिर भोर गई, अब रैन कहाँ जो सोवत है। जो सोवत है सो खोवत है, जो जागत है सो पावत है। जो कल करना वह आज काले,जोबाज करनावह अब करले। जब चिड़ियाँ खेतको चुग गई, फिर पछताये क्या होवत है। (१) तत्त्व विचार (१) घर-बार, कुटम्ब-परिवार, जितने भी ममताके नाते हैं, ये सव नाते केवल शरीर करके ही हैं। स्वप्नमें जब इस शरीर से हमारा सम्बन्ध नहीं रहता तभी ये ममताके नाते नहीं
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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