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________________ ( ३१ ) उर अन्धियार पाप पूर से भरयो है, तामें ज्ञान की चिराग चित जोय ले तो जोय ले । मानुष जन्म बार वार ना मिलेगो मुद्र, परं प्रभू से प्यारो होय ले तो होय ले । क्षणमङ्गर देह तामें जन्म सुधारिखो है, विजली के झमके मोती पोय ले तो पोय ले। अनके बाजी चौपड़ की पौ में अटकी प्राय । जो अबके पौ ना पड़े तो फिर चौरासी जाय ॥ मेरी वहिन ! मेरी प्यारी बुद्धि ! तू भ्राताके समान मेरा उपकार कर.। मैं तुम प्यारी वहिनका अतिथि है। तू ऐसा सत्यसत्य निर्णय कर जिससे हम-तुम सभी परिवार सुखी हो। इम पापी मनने मेरा बल मुझसे छीन लिया है, जिससे मैं अनन्त शक्ति होता हुआ भी इस दोनके सम्बन्धसे दीन हो गया हूँ। अव तू ज्यू -का-त्यूँ मुझे मेरा वल न्मरण करा, जिससे केमरीसिंहकी भांति इस मनके पिजरको तोड़ मुक्त हो जाऊँ। और पूर्ण त्यागका वल मेरेमे ऐसा भर, जिससे डंकेकी चोट मायाको जीत अपने वास्तविक स्वरूपमे प्रवेश पाऊँ, इस तुच्छ शरीरमै अहंभावको भस्मकर सर्व भूत-प्राणियोंमे अहंरूपसे स्थित होऊँ और सब सम्बन्धोको तोड़ तुम सबका ही आत्मा हो जाऊँ । __ मेरे प्यारे मन ! अब तू मेरा साथी वन, अपना विरोध त्यागकर मेरे वलमें अपना वल मिला और सत्यतासे विचार . कर कि विना त्यागके तो किसी प्रकार निर्वाह है नहीं: (१) यदि आर्थिक दृष्टि से कुटुम्बियोंके किसी प्रकार क्लेश का विचार करता है तो तू उनके प्रारब्धका स्वामी बनता है
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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