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________________ [ १६८ श्रात्मविलास - ] द्वि० खण्ड सम्मुख देशमें असम्भव थी । परन्तु हमारे मतमे तो सृष्टि की उत्पत्तिका अङ्गीकार ही नहीं, उत्पत्तिस्वरूप सृष्टि नहीं किन्तु प्रतीतिमात्र ही सृष्टि है। अर्थात् किसी श्रारम्भ परिणाम करके सृष्टिकी उत्पत्ति नहीं होती, किन्तु दृष्टिमात्र ही सृष्टि होती है । इस प्रकार सम्मुख देशमें स्थित जो घट है वह उत्पन्न नहीं हुआ, वल्कि द्रष्टा-पुरुपों की अपनी-अपनी दृष्टि ही घटाकार हो रही है और स्वप्नवत् उनकी अपनी दृष्टिमात्र ही घट है। क्योंकि पाचभौतिक सर्व सृष्टियाँ देश-काल- वस्तुपरिच्छेद्य हैं और जैसा पीछे अङ्क ६ से २६ में निरूपण किया गया है, इन त्रिविध-परिच्छेदों की उत्पत्ति सिद्ध नहीं हुई, किन्तु ये प्रतीत्तिमात्र ही पाये गये । इसीलिये सम्मुख देशमें स्थित जो घट है वह उत्पन्न नही हुआ, किन्तु अपनी-अपनी सृष्टिमें दृष्टिमात्र ही घट जाना गया। और यह नियम है कि एककी दृष्टिका दूसरेकी दृष्टिसे कोई विरोध नही होता; जैसे दस पुरुष किसी एक ही स्थानमे सोये हुए हों और अपने-अपने स्वप्न विरोधी स्वभावकी भिन्न-भिन्न एष्टियाँ र रहे हों, तो एककी सृष्टि दूसरेकी सृष्टिका न देश निरोध करती है. और विरोध ही करती है, क्योंकि वह दृष्टिमात्र ही सृष्टि है । एक की सृष्टिमें प्रचण्ड अग्नि लग रही हो, दूसरेकी सृष्टिमे प्रचण्ड पवन चल रहा हो और तीसरेकी सृष्टिमें प्रलय कालका जल उमड रहा हो, तो एक सृष्टिकी वायु दूसरी सृष्टिकी अनिका न सहायक है और न तीसरी सृष्टिका जल उस अग्निका बाधक । अपनी दृष्टि तो अपने लिये बाधक है। हमारी दृष्टिमें जो देश घट से निरुद्ध है उसी देशमे हमारी दृष्टिके लोष्ठादिके लिये अवकाश नही है, परन्तु हमारी दृष्टि दूसरेकी दृष्टिको बाधक नहीं हो सकती इस रीति से चूँकि उत्पत्तिस्वरुप घट नहीं केवल दृष्टिमात्र ही घट है, इसलिये एककी घटाकार -दृष्टि दूसरेकी घटाकार-दृष्टि अथवा ८
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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