SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 444
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आत्मविलास ] [१५४ वि० खण्ड अनुभवशन्य है। क्योकि जाति विशेषण है व धर्म है, जो अपने विशेष्य व धर्मारूप-द्रव्यके आश्रय रहती है, स्वतन्त्र उस जाति की न स्थिति है और न उसमें कोई क्रिया है। क्रिया सदैव द्रव्यरूप-व्यक्तिके आश्रय होती है, जैसे कुलालकी क्रिया कुलालरूपव्यक्तिके और चक्रकी क्रिया चक्ररूप-व्यक्तिके आश्रय रहती है, कुलालत्व व चक्रत्व-जातिमे कोई क्रिया नहीं। यदि जातिमे क्रिया माने तो कुलालत्व-जाति समष्टि कुलालोमें एक है, इस लिये एक कुलालमें एक क्रिया होनेसे समष्टि कुलालोमें वही क्रिया होनी चाहिये । इस प्रकार देश व कालरुप-जातिमे भी कार्यके प्रति कारणताका असम्भव है। (११) उपर्युक्त विचारसे देश व काल नित्य हैं और सर्व कार्योक प्रति कारण है, यह मत असङ्गत हुआ। बल्कि इस विचारसे तो देश, काल तथा कार्यरूप वस्तुकी समकालीनता ही सिद्ध हुई। साथ ही अब यह भी विचार होता है कि देश व काल अपने कार्यरूप वस्तुसे भिन्न देशमें रहकर तो कार्योत्पत्ति कर नहीं सकते, जैसे कुलाल घटसे तटस्थ रहकर घटकी उत्पत्ति करता है। किन्तु देश व काल कार्यरूप वस्तुके स्वरूपमें अनुगत होकर ही रहते हैं। कुलाल एक स्थूल व्यक्ति है, अतः घटके साथ उसका तादात्म्य असम्भव है, इसलिये कुलाल घटके साथ संयोगसम्बन्धद्वारा ही घटोत्पत्तिमे समर्थ होता है। परन्तु देश-काल तो अति सूक्ष्म हैं और यह नियम है कि सूक्ष्म-वस्तु स्थूलको व्याप्त करके ही स्थित होती है, जैसे सूक्ष्म-आकाश स्थूल-ब्राह्माण्डको व्यात्र करके ही स्थित रहता है। (१२) यदि ऐसा कहा जाय, कि जैसे घट और जलका । आधाराधेयभाय सम्बन्ध है, इसी प्रकार देश व काल घटके
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy