SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 442
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आत्मविलास] द्वि० खण्ड परमात्माके स्वरूपमें तो प्रवेश पाया नहीं गया, बल्कि उस सत्यस्वरूपकी अधिष्ठानता व साक्षिमे, उसको स्पर्श किये विना ही, इन त्रिविध-परिच्छेदोंकी प्रतीतिमात्र सिद्धि हुई। जैसे सत्यशुक्तिकी अधिष्ठानतामें शुक्तिको स्पर्श किये बिना ही, मिथ्या रजत प्रतीनिमात्र होती है। अब आओ देखें कि यह देश-कालवस्तुरूप प्रपत्र अपना भी कोई स्वरूप रखता है या यह मायामात्र ही है, क्योकि देश, काल और वस्तुगे भिन्न प्रपञ्चका और कोई रूप है ही नहीं। (७) देश, काल और वस्तु तीनो परिच्छेद, परस्पर वस्तुपरिच्छेदवाले ही हैं । अर्थात् तीनी एक वस्तु नहीं, बल्कि भिन्नभिन्न वस्तु हैं और अपनी भिन्न-भिन्न जाति रखते हैं। देश में देशत्व है कालत्व नहीं, कालमे कालत्व है देशत्व नही तथा वस्तु मे पस्तुत्व है देशत्व व कालत्व नहीं, इसतिये तीनो सजातीय नहीं विजातीय है । यद्यपि देश व काल भी वस्तुपरिच्छेदवाले होनेसे वस्तुत्व तो इन दोनोमे भी है, परन्तु जाति तीनामे समान नहीं, भिन्न-भिन्न जातिवाले होनेसे विजातीय ही है, सजातीय नहीं। (0) अब देखना यह है कि यह तोनी किसके पानय स्थित है" यद्यपि न्यायमतमें देश व कालको नित्य-द्रव्य माना है, परन्तु यहाँ प्रश्न होता है कि देश व काल जातिरूपमे नित्य हैं, अथवा व्यक्तिरूपसे निन्य हैं । यदि जातिरूपसे नित्य कहा जाय तो कोई हानि नही, जैसे घटत्व पटवादिजाति अपने प्रवादरूपसे नित्य है, तसे ही देश व काल भी अपने देशत्व व कालव जातिरूपले व प्रवाहरूपसे नित्य सम्भव हो सकते हैं। परन्तु यदि व्यक्तिरूपसे देश व कालको नित्य कहा जाय तो सर्वथा असम्भव है। क्योकि नित्य-विकारस्वरूप जिन देश-कालके विकारसे सम्पूर्ण प्रपञ्च विकारचक्रमें घूम रहा है अर्थात् सर्व विकारोंके
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy