SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 431
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४१] [ साधारण धर्म पद्य कवित्वम भी चतुर है, परन्तु यदि सद्गुरु के चरणारविन्दमे मन न लगा तो इन सर्व विद्यादिसे क्या फल हुआ? अर्थात कुछ नहीं । साराश, सभीका मत एक स्वरले यही है : यस्य देवे पराभक्तिर्यथा देवे तथा गुरौ । तस्यैते कथिता यर्थाः प्रकाशन्ते महात्मनः॥ अर्थ :-जिसकी ईश्वरमे पराभक्ति है और जैसी ईश्वर में भक्ति है वैसी ही गुरुमें है, उसी महात्माके हृदयमे यह शास्त्रके अर्थ यथार्थरूपमे प्रकाशमान होते है। ___ श्रीमद्गुरु वोलते-चालते ब्रह्म है, उनकी चरणधूलिमें लोटे बिना कोई भी कृतकृत्य नहीं हुआ। वह अधिकारी दीनोपर तनमन-वाणीसे बड़े ही दयालु होते हैं, शिष्यकं भववन्धन काट डालते हैं और अहङ्कारकी छावनी उठा देते हैं। वह शब्द-ज्ञानमें पारङ्गत होते हैं, ब्रह्म-ज्ञानमें सदा झूमते रहते हैं और निज-भाव से शिष्यको प्रबोध करानेमें समर्थ होते हैं।" ___ श्रीस्वामी विवेकानन्दनी अपने भक्तियोग विषयक प्रवन्धमे कहते हैं :-"गुरुकृपासे मनुष्यकी छुपी हुई अलौकिक शक्तियाँ विकसित होती हैं, उसे चैतन्य प्राप्त होता है, उसकी आध्यामिक वृद्धि होती है और अन्तमें वह नरसे नारायण हो जाता है। आत्मविकासका यह कार्य ग्रन्थोंके पढ़नेसे नहीं होता। जीवनभर हजारो ग्रन्थोंको उलट-पुलट करते रहो, उससे अधिक से अधिक तुम्हारा वौद्धिक ज्ञान ध्ढ़ेगा, पर अन्तमे यही जान पड़ेगा कि इससे श्राध्यात्मिक बल कुछ भी नहीं बढ़ा। बौद्धिक ज्ञान वढा तो उसके साथ आध्यात्मिक बल भी बढ़ना ही चाहिये, 1, यह कोई कहे तो सच नहीं है । ग्रन्थोके पढ़नेसे ऐसा भ्रम होता है, पर सूक्ष्मताके साथ अवलोकन करने पर यह जान पड़ेगा कि
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy