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________________ १३६] [ साधारण धर्म • दोहा । सन-शुरु श्रीहरिके चरण, अधिक अरुण अरविन्द । दुःखहरण तारणतरण, मुक्तकरण सुखकंद ॥१॥ नमस्कार सुन्दर करत, निशिदिन बारम्बार । सदा रहे मम शीशपर, राद्गुरु चरण तुम्हार ॥२॥ तन मन इन्द्रिय वशकरण, ऐसा सद्गुरु सूर । ____ शङ्कन अने जगत् की, हरि । सदा हजूर शा द्वंद्वरहित निर्मल सदा, सुखदुःख एक समान । भेदाभेद न देखिये, सद्गुरु चतुर सयानं ॥४॥ मनसा वाचा कर्मणा, सब ही तूं निर्दोष । क्षमा दया जिनके हृदय, लिये सस्य संतोप ॥ भानु उदय ज्यू होत है, रजनी तमको नाश । सुखदाई शीतल सदा, जिनके हृदय प्रकाश ॥ सद्गुरु सुधा-समुद्र हैं, सुधामयी है नैन । नख-शिख सुधास्वरूप है, सुधासु वर्षे बैन ॥७॥ हरि सद्गुरु शीशपर, उरमें जिनको नाम । सुन्दर आये शरण तकि, तिन पायो निजधाम || बहे जात संसारमे, सद्गुरु पकड़े केश । सुन्दर काढे डूबते, दे अद्भुत उपदेश ॥il सुन्दर सद्गुरु जगत्मे, पर उपकारी होय।। नीच ऊँच सब उद्धरै, शरण जुआवे कोय ॥१०॥ सुन्दर सद्गुरु सहजमे, किये सु परली पार। ___ और उपाय न तरि सके, भवमागर संसार ||११|| । सद्गुरुकृपाके विना कोई भी अपना परमार्थ सिद्ध नहीं कर सकता । श्रीगुरुकृपाके विना रज-तम धुलकर निर्मल नहीं होते
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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