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________________ १११] [ साधारण धर्म अपने मतके नवे अक्षमे तिलक महोदयका कथन है कि गीता तिलक-मतके नवम 1 के प्रत्येक अध्यायकी समाप्तिमें 'श्रीमद्भगवअंकका निराकरण [ दुगीतासपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे ऐसा सङ्कल्प आया है। इसका अर्थ यह है कि ब्रह्म-विद्याकी प्राप्तिमें 'संन्यास' और 'योग' दो मार्गोमे 'योग' श्रेष्ठ है और यही गीताका प्रतिपाद्य विषय है।' __तिलक महोदयका यह अनुमान-प्रमाण भी भ्रममूलक है। 'योग-शास्त्र से भावार्थ निष्काम कर्मयोग ही नहीं है, इतना ही अर्थ ग्रहण करनेसे तो 'योग' शब्दकी व्यापकता भङ्ग होती है। 'योग' शब्दका अर्थ 'जुड़ना 'मिलाप पाना' है, जैसा हमारे समाधानके पञ्चस अङ्कमे इसका स्पष्ट निरूपण किया जा चुका है और यही अर्थ व्यापक रूपसे यहॉ विवक्षित है। धर्मके जितने भी अङ्ग हैं, ईश्वरप्राप्तिमे सहकारी होनेसे सभी 'योग' नामसे कहे जा सकते हैं और इसीलिये गीताका प्रत्येक अध्याय भिन्न-भिन्न योगके नामसे निरूपण किया गया है। जिस-जिस अभ्यायमे जिस-जिस साधनका मुख्यतया निरूपण हुआ है वह उसी नामसे कहा गया है। यदि 'योग' शब्दसे केवल 'कर्मयोग' ही मन्तव्य होता, तो भिन्न-भिन्न नामविशिष्ट योग न कहे जाते, जैसे :संख्या माम अध्याय ।। संख्या नाम श्रध्याय १ अर्जुनविषादयोग ८ अक्षरब्रहयोग २ सांख्ययोग ६ राजविद्याराजगुपयोग ३ कर्मयोग १० विभूतियोग ४ ज्ञानकर्मसंन्यासयोग ११ विश्वरूपदर्शनयोग ५ कर्मसंन्यासयोग १२ भक्तियोग । ६ आत्मसंयमयोग , . १३ क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग ' ७ ज्ञानविज्ञानयोगः || १४ गुत्रियविभागयोग
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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