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________________ श्रात्मविलास] द्वि० सण्ड एक गणितशास्त्रवेत्ता पण्डितकी क्या है कि वह वार कुटुम्बसहित देशान्तरके लिये निकला । मार्गमें एक नदी आई, विचार हुआ कि इससे कुटुम्बको कैनै पार करें। कहीं कोई छोटाघड़ा नदीमें डूब न जाय । पण्डितजीको गणित-शाम्प्रकी स्मृति आई और मट नदीके इस तीर, परले तोर तथा मध्यवर्ती जलका माप लेकर तीनोंका समभाग निकाल लाये । घर अपने बुद्धम्य के प्रत्येक व्यक्तिकी ऊँचाई मापकर उन सबकी ऊँचाईका समभाग निकाल लिया, तत्र सर्व कुटम्बकी ऊँचाई समभागसे नदी का समतल एक फुट कमती रहा। पण्टिननोको बडी प्रमन्नता हुई कि कुटुम्य निर्षितासे पार हो जायगा और सबके सब नदीमे उतर पड़े। परन्तु जब नदीके मध्यमे पहुंचे तो कई छोटेछोटे बच्चे डूब गये। पार जाकर पण्डितजीको चिन्ता हुई और फिर अपने गणितकी पड़ताल की, परन्तु हिसाव पूर्ववत शुद्ध निकला। वारम्बार पड़ताल करनेपर पण्डितजी व्याकुल हुए और सोचने लगे कि 'लेखा ज्यूँका त्यॆ युनबा डूबा क्यो १५ ठीक, वही हिसाव उन लोगोका है जो वास्तविक रहस्यको न जान शरीगेंद्वारा एकता बनानेके पीछे पड़े हुए हैं और धार्मिकमर्यादाओंको भङ्ग कर रहे हैं। यधपि धार्मिक मर्यादाएँ क्रम-क्रमले व्यव्हार में आई हुई श्रापेकी भेंट लेनेके तिये है और जिज्ञासुके चित्तको ऊँचा उठा ले जाकर वास्तविक अभेदमें प्रवेश करा देनेके लिये ही हैं। तथापि जो लोग अपने चितोंको उन्नत किये बिना ही केवल जड़-शरीरके व्यवहारसे ही एकता बनानेके अभिमानी है और धार्मिक-मर्यादाएँ तोड़नेके पीछे पड़े हुए है, वे न श्राप ऊँचे उठेगे और न दूसरोको उठाएँगे। हम आप नीचे गिरकर गिरे हुओंको नहीं उठा सकते, बल्कि आप ऊँचा उठकर ही गिरे हुओंको उठा सकते हैं । जिस प्रकार किसी स्थानकी वायु आप
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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