SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५१ ] [साधारण धर्म प्रेम न बाड़ी ऊपजे, प्रेम न हाट विकाय । . राजा परजा जेहि रुचे, शीश देह ले जाय ॥२५॥ प्रेम पियाला जो पिये, शीश दक्षिणा देय । लोमो शीश न दे सके, नाम प्रेम का लेय ॥२६॥ हे वैराग्यमूर्ति, कल्याणस्वरूप, शिव-शम्भो ! बारम्बार वैराग्यको शुभागमन | तुझको मेरा हार्दिक नमस्कार है। तेरा और चतुर्विध वैराग्य , दर्शन अनेक जन्मोंके पुण्योंका फल है निरूपण। और हमारे कल्याणके लिये है । तुहृदयमें उतरा कि जन्म-मरणके सब वन्धन ढीले पड़े। जन्म-जन्मान्तरके सम्पूर्ण यज्ञ, दान, जप, तप, व्रत और तीथांदिकोंका फल तू ही है। जब सम्पूर्ण यज्ञादि अपना पुण्यफल देनेके लिये इक हो जाते है और पुण्यफलके भारसे, भुककर वृक्षकी नाई पृथ्वीसे लग जाते हैं,तब तेरा दर्शन होता है। तू आया कि सम्पूर्ण यज्ञादि अपने फलसे मुक्त हुए । यावत् संसारी भोगकामनाएँ जो डाकिनी के समान हमारे हृदयोंको नोच-नोचकर खा रही थीं, उनको भक्षण करनेके लिये तू पिशाच है । राग, द्वेष, काम, क्रोध, लोभ और मोहादि विकाररूपी गृद्ध जो अपनी पञ्चायत हृदयमें लगाये बैठे थे, वाजके समान तेरे दर्शनमात्रसे सभी भाग गये। तृष्णारूपी मण्डूकको पास करनेके लिये तू सर्प है, मोहरूपी सर्पको भक्षण करनेके लिये तू गरुड़ है, क्रोधरूपी सिंहको जीतनेके लिये तू शरभ है । दुराशा दीनतारूपी शृगालोंको मार भगाने के लिये तू सिंह है। तेरा दर्शन हुआ कि ये सब पीठ दिखाते हुए। दम्भरूपी लोमड़ीके लिये तू भेड़िया है, लोमम्पी कूकर को विजय करनेके लिये तू चोता है, मानरूपा भेड़ियेको दमन करने के लिये तू केसरी सिंह है । तेरी जय हो! तेरी जय हो !! सभी मनोविकार जो जन्म-जन्मान्तरसे अग्निके समान हृदयको तपा
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy