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________________ २१३ ] [साधारण धर्म सुर्य, गणेश और शिवरूप पञ्च अधिदैव शक्तियोंकी उपासना · को ही मुख्य रूपसे वर्णन किया है। इन पञ्चदेवोंमें भी कौन देव उपास्य है ? इसका निर्णय इस प्रकार किया गया है कि उपासकका चित्त स्वाभाविक जिस देवमें अटक्ता हो, उसके लिये वही उपास्यदेव है। शासकारोंका आशय इन पञ्च देवोंमें किसी एकको बड़ा और दूसरोंको छोटा वनानेमे नहीं है । यद्यपि महर्षि वेदव्यासद्वारा रचित अष्टादश पुराणों के अन्तगंत विष्णुपुराण, पद्मपुराण, देवीपुराण, शिवपुराण, सौरपुराण व गणेशपुराण हैं और इन प्रत्येक पुराणोंमें अपने-अपने देवको कारणाप तथा दूसरे देवोंको कार्यरूपसे वर्णन किया गया है। तथापि महर्षि व्यासका तात्पर्य दूसरे देवों की निन्दामें नहीं है, किन्तु भावुक्की प्रवृत्तिके अर्थ अपने-अपने पुराणप्रतिपादित देवकी महिमामे ही महर्पिका तात्पर्य है। यदि दूसरे देवोंकी निन्दामें ही तात्पर्य लिया जाय तो उपर्युक्त पञ्चदेवोंसे कोई भी महिमायोग्य उपास्यदेव न रहे और सभी निन्दित सिद्ध हो जाएँ । यथा पद्मपुराणप्रतिपादित . विष्णुदेवके सिवाय अन्य सभी देव निन्दित हो गये और अन्य पुराणोंद्वारा विष्णु निन्दित हो गया। तथा शिवपुराणद्वारा शिवसे भिन्न अन्य देव निन्दित हो गये और अन्य पुराणोंद्वारा शिव निन्दित हो गया इत्यादि, जब कि इन सब पुराणों का रचयिता एक ही है। परन्तु वस्तुतः ऐसा नहीं है, किसी भी देवकी निन्दामे महर्पिव्यासका तात्पर्य नहीं हो सकता। ऋषि व शास्त्र उदार हैं और वे सब प्रकारके अधिकारियोंके लिये श्रेयपथप्रदर्शक है। प्रकृतिके राज्यमें रुचि व अधिकारकी विलक्षणता तो स्वाभाविक ही है। इसीलिये जिस-जिस अधिकारी की जिस-जिस देवमें स्वाभाविक रुचि हो,उसके कल्याणके लिये उस-उसदेवकी महिमामें भिन्न-भिन्न पुराणोंकी रचना उनके द्वारा
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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