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________________ आत्मविलास ] [ १६६ यद्यपि ऐसा प्रभु सबके हृदयमें ही निर्विकार रुपये स्थित है, तथापि सकल संसारी जीव दीन व दुखारी ही रहते है। परन्तु 'तत्वमस्यादि' नामके कथन व अभ्याससे वह प्रभु इसी प्रकार नकद प्राप्त हो जाता है, जैसे रलसे रत्नका मूल्य नकद मिल जाता है ।।१।। निर्गुण ते इहि भाँति बड, नाम प्रभाव अपार । कहऊँ नाम बड़ राम ते,निज विचार अनुसार ।। इस प्रकार निर्गुणब्रह्मसे तो 'नाम'का प्रभाव बड़ा और अपार है ही, अव सगुणरामसे भी 'नाम'को अपने विचारके अनुसार वड़ा कहता हूँ। राम भक्त हित नर तनु धारी । सहि संकट किये साधु मुखारी।। नाम सप्रेम जपत अनयासा । भक्त होहिं मुद मंगल रासा ॥१४॥ रामने भक्तोंके लिये नरशरीर धारण किया और संकट सह-सहकर साधुओंको सुखी किया। परन्तु प्रेमसहित 'नाम' जपनेसे अनायास ही भक्त आनन्द व मङ्गलके घर हो जाते हैं ।।१४॥ . .. राम एक तापस तिय तारी । नाम कोटि खल कुमति सुधारी ।। ऋषि हित राम सुकेतु सुताकी । सहित सैन सुत कीन बेवाकी ॥१५॥
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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