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________________ ६७] [ साधारण धर्म मूढयाहेणात्मनो यत्पीडया क्रियते तपः । परस्योत्सादनार्थ वा तत्तामसमुदाहृतम् ॥ (श्लोक १९) अर्थः-जो तप मूढतापूर्वक हठसे मन, वाणी और शरीर को पीड़ा पहुँचाकर अथवा दूसरेका अनिष्ट करनेके लिये किया जाता है, वह तामस कहा गया है। प्रदेशकाले यदानमपात्रेभ्यश्च दीयते । असत्कृतमवज्ञातं तत्तामसमुदाहृतम् ।। (श्लोक २२) अर्थ:-जो दान विना सत्कार किये, तिरस्कारपूर्वक, अयोग्य देश-कालमे तथा कुपात्रोंके लिये अर्थात् मद्य-मांसादि अभक्ष्य वस्तुओंके खानेवालों एवं चोरी आदि नीच कर्म करनेवालोंके लिये दिया जाता है, वह तामसिक कहा गया है। ऐसे पुरुषोंद्वारा विवाह आदिके अवसरपर प्रायः इसी प्रकारका दान किया जाता है तथा बड़े परिश्रमसे उपार्जन किये धनका ऐसे पवित्र समयमें श्रातिशबाजी, वारावहारी, वेश्यानृत्य, आदिके द्वारा दुर्व्यय करके अनर्थ ही उपार्जन किया जाता है, जिसके फलस्वरूप यमयातना ही पल्ले पड़ती है । बजाय इसके कि ऐसे पवित्र विवाहसंस्कारको, जो दुल्हा-दुलहिन, सम्पूर्ण कुल और भावी सन्तानके लिये एक प्रकारसे बुनयाद है, सत्त्वगुणी बनाया जाय,ऐसा तमोगुणी बनाया जाता है कि जिसका विवरण करते हुए लेखनी सकुचाती है। व्यभिचार दृष्टिसे क्या पिता, क्या पुत्र सभी कुटुम्बियोंकी समान दृष्टिका विषय इस समय एक ही वेश्या बनी रहती हैं, जिसके फलस्वरूप विवाहके उद्देश्यका (जिसका संक्षेपसे निरूपण कर पाए हैं) वीज ही, जिसके द्वारा ईश्वरप्राप्ति और चिरशान्तिरूपी फल पकाना इष्ट था,एकदम दुग्ध. हो जाता है । जो समतादृष्टि सारे संसारके प्रति स्थापन करना
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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