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________________ श्रात्मविलास ] [ ७१ दो महात्मा मिलकर तीर्थाटनको निक्ले । एक उनमें गी अर्थात् धनसंग्रह करनेवाला था और दूसरा त्यागी । मार्गम धनके ग्रहण व त्यागके दोनों चर्चा करते जा रहे थे। रागी महात्मा areas गुणों पक्ष लिये जाते थे और त्यागीजी उसके दोपोपर टटं हुए थे । मायफाल के समय दोनों एक नदी के किनारे पहुंचे । रागी महात्माने कहा "शतको हम जाडेमें यहाँ ठिठुर जायेंगे, साथ ही जनल का मौका है भेड़िये हमको वा जायेंगे अच्छा यह होगा कि नौकापर आरूढ़ होकर नदीपार उस माममें जा ठहरे।" त्यागीजीको भी यह प्रस्ताव प्रिय हुआ । अन्ततः नौकावाले से ठहराव काव करके दोनो नदीपार ग्राम में जा ठहरे। नौका से उतरकर रागी - महात्मा बिगड़े और त्यागीजीको डाटने लगे ! "धनसंग्रहका तत्काल फल देख लिया, यदि मैं धनका सग्रह न रखता तो हम दोनों आज ही रातको जाड़े व हिंस्रपशुवो करके मारे जाते, फिर कभी त्यागका उपदेश न करना ।" त्यागी - महात्मा वोले "यदि तुम धनका त्याग न करते, नौकावालेको धन न देते, यदि तुम धनका सब्चय किये रहते तो हम दोनों अवश्य जाडे व हिंस्र-पशुवी करके मारे जाते, मेरे विश्वास व त्यागके कारण ही तुम्हारी जेब मेरी जेब वन गई, मुमको कभी कोई कष्ट नहीं होता ।" सुखका असम्भव धनके साथ ही नहीं, यावत् भोग्य-पदार्थो के साथ इसी भोग्य-प नियमका सम्बन्ध है । कोई मोग्य-पदार्थ अपनी विद्यमानता ही, जबतक कि वह नष्ट न किया जाय, सुखसाधन नहीं हो सकता । जिस प्रकार श्रतिशवाजी के अनारदानेसे शब्द व प्रकाश उसी कालमे प्राप्त होता है, जब कि उसको अग्नि लगा कर टुकड़े-टुकडे करके उड़ा दिया जाता है। परिणाम स्पष्ट है, भोग्य-पदार्थोंको ही
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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