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________________ स्वामी समन्तभद्र। अद्वैताद्याग्रहोग्रग्रहगहनविपनिग्रहेऽलंघ्यवीर्याः स्यात्कारामोघमंत्रप्रणयनविधयः शुद्धसध्यानधीराः। धन्यानामादधाना धृतिमधिवसतां मंडलं जैनमत्र्यं वाचः सामन्तभद्रयो विदधतु विविधां सिद्धिमुद्भूतमुद्राः। अपेक्षकान्तादिप्रबलगरलोद्रेकदलिनी प्रवृद्धानेकान्तामृतरसनिषेकानवरतम् । प्रवृत्ता वागेषा सकलविकलादेशवशतः समन्ताद्भद्रं वो दिशतु मुनिपस्यामलमतेः ॥ अष्टसहस्रीके इन पद्योंमें भी श्रीविद्यानंद जैसे महान् आचार्योंने, जिन्होंने अष्टसहस्रीके अतिरिक्त आप्तपरीक्षा, प्रमाणपरीक्षा, सत्यशासनपरीक्षा, श्लोकवार्तिक, श्रीपुरपार्श्वनाथस्तोत्र और जिनैकगुणसंस्तुति आदि कितने ही महत्त्वपूर्ण ग्रंथोंकी रचना की है, निर्मलमति श्रीसमंतभद्र मुनिराजकी वाणीका अनेक प्रकारमे गुणगान किया है और उसे अलंध्यवीर्य. स्यात्काररूपी अमोघमंत्रका प्रणयन करनेवाली, शुद्ध सद्धयानधीरा, उद्भूतमुद्रा, (ऊँचे आनंदको देनेवाली) एकान्तरूपी प्रबल गरल विषके उद्रेकको दलनेवाली और निरन्तर अनेकान्तरूपी अमृत रसके सिंचनसे प्रवृद्ध तथा प्रमाण नयोंके अधीन प्रवृत्त हुई लिखा है। साथ ही यह वाणी नाना प्रकारकी सिद्धिका विधान करे और सब सरिप्रभावसिद्धिकारिणी स्तुये,' यह वाक्य कहा है उससे भी इसका समर्थन होता है; क्योंकि पात्रकेसरी विद्यानन्दका नामान्तर है। समन्तभद्रके देवागम स्तोत्रसे पात्रकेसरीकी जीवनधारा ही पलट गई थी और वे बड़े प्रभावशाली विद्वान् हुए हैं। १'ध्यानं परीक्षा तेन धीराः स्थिराः' इति टिप्पणकारः । २'उजूता मुदं रान्ति ददातीति ( उद्भूतमुद्राः) इति टिप्पणकारः ।
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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