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________________ गुणादिपरिचय । समन्तभद्रादिमहाकवीश्वराः कुवादिविद्याजयलन्धकीर्तयः । सुतकशास्त्रामृतसारसागरा मयि प्रसीदन्तु कवित्वकांक्षिणि ॥७॥ (५) भगवजिनसेनाचार्यने, आदिपुराणमें, समंतभद्रको नमस्कार करते हुए, उन्हें ' महान् कविवेधा' कवियोंको उत्पन्न करनेवाला महान् विधाता अर्थात् , महाकवि-ब्रह्मा लिंखा है और यह प्रकट किया है कि उनके वचनरूपी वज्रपातसे कुमतरूपी पर्वत खंड खंड हो गये थे । नमः समन्तभद्राय महते कविवेधसे । यद्वचोवजपातेन निर्मिनाः कुमताद्रयः ॥ (६) ब्रह्म अजितने, अपने ' हनुमचरित्र में, समन्तभद्रका जयघोष करते हुए, उन्हें ' भव्यरूपी कुमुदोंको प्रफुल्लित करनेवाला चंद्रमा' लिखा है और साथ ही यह प्रकट किया है कि वे 'दुर्वादियोंकी वादरूपी खाज (खुजली) को मिटानेके लिये अद्वितीय महौषधि' थे—उन्होंने कुवादियोंकी बढ़ती हुई वादाभिलाषाको ही नष्ट कर दिया था जीयात्समन्तभद्रोऽसौ भव्यकैरवचंद्रमाः। दुर्वादिवादकडूनां शमनैकमहौषधिः ॥ १९ ॥ (७) श्रवणबेलगोलके शिलालेख नं० १०५ ( २५४ ) में, जो शक संवत् १३२० का लिखा हुआ है, समंतभद्रको 'वादीभवांकुशसूक्तिजाल' विशेषणके साथ स्मरण किया है-अर्थात् , यह सूचित किया है कि समंतभद्रकी सुन्दर उक्तियोंका समूह वादीरूपी हस्तियोंको वशमें करनेके लिये वज्रांकुशका काम देता है । साथ ही, यह भी प्रकट किया है कि समन्तभद्रके प्रभावसे यह संपूर्ण पृथ्वी दुर्वादकोंकी वार्तासे भी विहीन हो गई-उनकी कोई बात भी नहीं करता
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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