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________________ स्वामी समन्तभद्र। किरणें स्फुरायमान हो रही हैं वहाँ वे लोग खद्योत या जुगनूकी तरह हँसीको ही प्राप्त होते हैं जो थोड़ेसे ज्ञानको पाकर उद्धत हैं-कविता करने लगते हैं.और इस तरहपर उन्होंने समंतभद्रके मुकाबले में अपनी कविताकी बहुत ही लघुता प्रकट की है समन्तभद्रादिकवीन्द्रभास्वता स्फुरन्ति यत्रामलमूक्तिरश्मयः। बजन्ति खद्योतवदेव हास्थता, न तत्र किं ज्ञानलवोद्धता जनाः ॥ १४ ॥ (३ ) अलंकारचिन्तामणिमें, अजितसेनाचार्यने समंतभद्रको नमस्कार करते हुए, उन्हें ' कविकुंजर' 'मुनिवंद्य' और ' जनानन्द' ( लोगोंको आनंदित करनेवाले ) लिखा है और साथ ही यह प्रकट किया है कि मैं उन्हें अपनी 'वचनश्री' के लिये-वचनोंकी शोभा बदाने अथवा उनमें शक्ति उत्पन्न करनेके लिये-नमस्कार करता हूँ श्रीमत्समन्तभद्रादिकविकुंजरसंचयम् । मुनिवंद्यं जनानन्दं नमामि वचनश्रियै ॥ ३ ॥ (४) वरांगचरित्रमें, परवादि-दन्ति-पंचानन श्रीवर्धमानसूरि समंतभद्रको ' महाकवीश्वर' और ' सुतर्कशास्त्रामृतसारसागर' प्रकट करते हुए, यह सूचित करते हैं कि समंतभद्र कुवादियों (प्रतिवादियों) की विद्यापर जयलाभ करके यशस्वी हुए थे। साथ ही, यह भावना करते हैं कि वे महाकवीश्वर मुझ कविताकांक्षीपर प्रसन्न होवें--अर्थात्, उनकी विद्या मेरे अन्तःकरणमें स्कुरायमान होकर मुझे सफल मनोरथ करें
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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