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________________ १६८ स्वामी समंतभद्र । मग्गप्पभावणहं पवयणभक्तिप्पचोदिदेण मया भणियं पवयणसारं पंचत्थियसंगहं सुत्तं ॥ १७३ ॥ इससे स्पष्ट है कि कुन्दकुन्दने अपना यह ग्रंथ किसी व्यक्तिविशेषके उद्देश्यसे अथवा उसकी प्रेरणाको पाकर नहीं लिखा, बल्कि इसका खास उद्देश्य 'मार्गप्रभावना' और निमित्तकारण 'प्रवचनभक्ति' है। यदि कुन्दकुन्दने शिवकुमार महाराजके सम्बोधनार्थ अथवा उनकी खास प्रेरणासे इस ग्रंथको लिखा होता तो वे इस पद्यमें या अन्यत्र कहीं उसका कुछ उल्लेख जरूर करते, जैसे कि भट्टप्रभाकरके निमित्त 'परमात्मप्रकाश' की रचना करते हुए योगीन्द्रदेवने जगह जगह पर ग्रंथमें उसका उल्लेख किया है। परंतु यहाँ मूल ग्रंथमें ऐसा कुछ भी नहीं, न प्राचीन टीकामें ही उसका उल्लेख मिलता है और न कुन्दकुन्दके किसी दूसरे ग्रंथसे ही शिवकुमारका कोई पता चलता है । इस लिये यह थ शिवकुमार महाराजके संबोधनार्थ रचा गया ऐसा माननेके लिये मन सत्ता तय्यार नहीं होता । संभव है कि एक विद्वानने किसी किम्बदंतीके आधार पर उसका उल्लेख किया हो और फिर दूसरेने भी उसकी नकल कर दी हो। इसके सिवाय, जयसेनाचार्यने 'प्रवचनसार' की टीकामें प्रथम प्रस्तावनावास्यके द्वारा, 'शिवकुमार' का जो निम्न प्रकारसे उल्लेख किया है उससे शिवकुमार महाराजकी स्थिति और भी संदिग्ध हो जाती है अथे. कश्चिदासमभव्यः शिवकुमारनामा स्वसंवित्तिसमुत्पन्नपरमानन्दैकलक्षणसुखामृतविपरीतचतुर्गतिसंसारदुःखभयभीतः समुत्पत्रपरममेदविज्ञानप्रकाशातिशयः समस्तदुर्नयैकान्तनिराक १ देखो, रायचंद्रजैनशास्त्रमालामें प्रकाशित 'प्रवचनसार ' का वि० सं० १९६९ का संस्करण।
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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