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________________ समय-निर्णय । से भी कुछ पहलेके विद्वान् थे, यह स्पष्ट है। डॉक्टर बूल्हरने जो आपको ईसाकी पाँचवीं शताब्दीका विद्वान् लिखा है वह ठीक ही है। पूज्यपादके एक शिष्य 'वजनन्दी' ने वि० सं० ५२६ (ई० स० ४७०) में 'द्राविड' संघकी स्थापना की थी, जिसका उल्लेख देवसेनके 'दर्शनसार ' ग्रंथमें मिलता है * और इससे यह मालूम होता है कि पूज्यपाद 'दुर्विनीत' राजाके पिता ' अविनीत के राज्यकालमें भी मौजूद थे, जो ई० सन् ४३० से प्रारंभ होकर ४८२ तक पाया जाता है । साथ ही, यह भी मालूम पड़ता है कि द्राविड़ संघकी स्थापना जब पूज्यपादके एक शिष्यके द्वारा हुई है तब उसकी स्थापनाके समय पूज्यपादकी अवस्था अधिक नहीं तो ४० वर्षके करीब जरूर होगी और उन्होंने अपने ग्रंथोंकी रचनाका कार्य ई० सन् ४५० के करीब प्रारंभ किया होगा। ऐसी हालतमें, समन्तभद्र प्रायः ई० सन् ४५० से पहले हुए हैं, यह कहनेमें कुछ भी संकोच नहीं होता । परंतु कितने पहले हुए हैं, यह बात अभी विचारणीय है। इस प्रश्नका समुचित और यथार्थ एक उत्तर देनेमें बड़ी ही कठिनाइयाँ उपस्थित होती हैं । यथेष्ट साधनसामग्रीकी कमी यहाँपर बहुत ही खलती है । और इसलिये, यद्यपि, इस विषयका कोई निश्चयात्मक एक १ Ind. Ant., XIV, 355. २ यह ग्रंथ वि० सं० ९९० का बना हुआ है। *–सिरिपुजपादसीसो दाविडसंघस्स कारगो दुहो। णामेण वजणंदी पाहुवेदी महा सत्तो ॥२५॥ पंचसए छब्बीसे विकमरायस्स मरणपत्सस । दक्खिणमहुराजादो दाविडसंघो महामोहो ॥ २८ ॥ ३ अविनीत राजाका एक ताम्रलेख शक सं० ३८८ (ई. सन् ४६६)का लिखा हुआ पाया जाता है जिसे मरा प्लेट नं०.१ कहते हैं।
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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