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________________ १४२ स्वामी समन्तभद्र। कर 'यो देवनन्दिप्रथमाभिधानः' इत्यादि पोंके द्वारा पूज्यपादका परिचय दिया है, और १०८ वें शिलालेखमें समन्तभद्रके बाद पूज्यपादके परिचयका जो प्रथम पद्य दिया है उसीमें 'ततः' शब्दका प्रयोग किया है, और इस तरहपर पूज्यपादको समन्तभद्रके बादका विद्वान् सूचित किया है। इसके सिवाय, स्वयं पूज्यपादने, अपने 'जैनेन्द्र ' व्याकरणके निम्न सूत्रमें समन्तभद्रका उल्लेख किया है 'चतुष्टयं समन्तभद्रस्य ।' ५-४-१४०॥ इन सब उल्लेखोंसे यह बात और भी स्पष्ट हो जाती है कि समन्तभद्र पूज्यपादसे पहले हुए हैं। पूज्यपादने 'पाणिनीय' व्याकरण पर 'शब्दावतार' नामका न्यास लिखा था और आप गंगराजा 'दुर्विनीत' के शिक्षागुरु ( Preceptor ) थे; ऐसा ' हेब्बूर' के ताम्रलेख, 'एपिग्रेफिया कर्णाटिका' की कुछ जिल्दों, ‘कर्णाटककविचरिते' और 'हिस्टरी ऑफ कनडीज लिटरेचर' से पाया जाता है । साथ ही यह भी मालूम होता है कि 'दुविनीत' राजाका राज्यकाल ई० सन् ४८२ से ५२२ तक रहा है। इसलिये पूज्यपाद ईसवी सन् ४८२ १ पूज्यपादके परिचयके तीन पद्योंमें प्रथम पय इस प्रकार है-- श्रीपूज्यपादोद्धृतधर्मराज्यस्ततो सुराधीश्वरपूज्यपादः । यदीय-वैदुष्यगुणानिदानी वदन्ति शास्त्राणि तदुद्धृतानि ॥ २पूज्यपाद द्वारा 'शब्दावतार' नामक न्यासके रचे जानेका हाल 'नगर' ताल्लु. केके ४६ वें शिलालेख ( E. C. VIII, ) के निम्न वाक्यसे भी पाया जाता न्यासं जैनेन्दसंशं सकलबुधनुतं पाणिनीयस्य भूयोन्यासं शब्दावतारं मनुजतत्तिहितं वैधशाकं च कृत्वा । यस्तरवार्थस्य टीका व्यरचयदिह तो भास्यसौ पूज्यपादस्वामी भूपालवंधा स्वपरहितषचा पूर्णडग्बोधवृत्तः ॥
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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