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________________ मणिधारी श्रीजिनचन्द्रसूरि २३ पराइमुग्व हुए अश्रुपात करने लगे । उपस्थित श्रावक लोग भी वस्त्राञ्चल से नेत्र ढांक कर हिचकियां लेने लगे। इस समय चारों ओर मानो शोकसागर उमड पड़ा था। गुरुविरह के अतिरिक्त किसी को अन्य कोई बात नहीं सूझ पड़ती थी। सचमुच इस अप्रिय दृश्य को देख कर अन्य दर्शक लोग भी अपने हृदय को थामने में असमर्थ से हो गए। इस असमञ्जस अवस्था को देख कर कुछ क्षण के पश्चात् श्री गुणचन्द्रगणि स्वयं धैर्य धारण करके साधुओं के प्रति इस प्रकार कहने लगे ____ "हे महासत्वशील साधुओ। आप लोग अपनी आत्मा को शान्ति दें, खोया हुआ रन अब लाख उपाय करने पर भी हाथ नहीं आने का । पूज्यश्री ने अपने अन्तिम समय में मुझे आवश्यक कर्तव्यों का निर्देश किया है, मैं उनकी आज्ञानुसार वैसा ही कलंगा कि जिस से आप सब को सन्तोप हो। इस समय आप लोग मेरे साथ साथ चले आइए।" इस समय दाह संस्कार सम्बन्धी क्रिया-कलाप को सम्पादित कर सर्वादरणीय भाण्डागारिक श्रीगुणचंद्र गणि पौषधशाला मे पधारे। वहां कुछ दिन ठहर कर चतुर्विध संघ के साथ बब्वेरक की ओर विहार कर दिया। श्रीगुणचन्द्र गणि ने बव्वरक जाकर श्रीजिनचद्रसूरिजी की आज्ञानुसार नरपति मुनि को श्रीजिनदत्तसूरिजी के वृद्ध शिप्य
SR No.010775
Book TitleManidhari Jinchandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShankarraj Shubhaidan Nahta
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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