SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २० raamanamamarrrrrrr . ar rrrrrrrrrrrror oran maran मणिधारी श्रीजिनचन्द्रमरि साथ स्वर्ग सिधारे । अन्त समय मे श्रावकों के समक्ष आप श्री ने एक भविष्यवाणी की कि "शहर के जितनी ही दूर हमारा देह-संस्कार किया जायगा, नगर की आवादी उतनी ही दूर तक बढ जायगी" इन शब्दों को स्मरण कर श्रावक लोग सूरिजी की पवित्रदेह को वडे समारोह के माथ अनेक मण्डपिकाओं से मण्डित निर्यान-विमान में विराजमान कर नगर के बहुत दूर लि गए। चन्दन कर्पूरादि सुगन्धित द्रव्यों से सूरि-महाराज की) अन्त्येष्टिक्रिया की गई । मूरिजी की देह के अन्तिम दर्शन करते हुए श्री० गुणचन्द्र ३ गणि पूज्यश्री के गुण वर्णनात्मक कान्यो: से इस प्रकार स्तुति करने लगे-- १ पट्टावलियों में लिखा है कि आपका स्वर्गवास योगिनी के छल से हुआ था। २ यह स्थान अभी दिल्ली में कुतुब मीनार के पास 'बड़े दादाजी' के नाम से प्रसिद्ध है। पट्टावलियों में इस स्तूप का अविष्ठाता खोडिया ( खज) क्षेत्रपाल लिया है। ३ स० १२३२ फाल्गुण शुक्ला १० विक्रमपुर में इनके स्तूप की प्रतिष्ठा श्रीजिनपतिसुग्जिी ने की थी। गणवरसार्धगतक की हवृत्ति में इनका परिचय इस प्रकार मिलता है__ये पहले श्रावक थे, एक तुर्क ने इनको हस्तरेखा टेस "यह अच्छा भण्डारी होगा" नात कर भाग जाने को सम्भावना से इन्हे दृढ जजीर से
SR No.010775
Book TitleManidhari Jinchandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShankarraj Shubhaidan Nahta
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy