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________________ ammerine wwwwnow मणिधारी श्रीजिनचन्द्रसूरि १९ महाराज ने उनमे से अतिवल नामक देवता को प्रतिवोध दिया। वह भी उपशान्त होकर सूरिजी से कहने लगा-आपके उपदेश से मैंने मासवलि का परित्याग कर दिया है परन्तु कृपा कर के मुझे रहने के लिए कोई स्थान बतलावें जहां रहता हुआ मैं आपके आदेश का पालन कर सकें। ___ सूरिजी ने कहा-अच्छा, श्रीपार्श्वनाथ विधिचैत्य मे प्रवेश करते समय दक्षिणस्तम्भ में जाकर निवास करो। देवता को इस प्रकार आश्वासन देकर सूरिजी पौषधशाला मे पधारे । उन्होंने सा० लोहड, सा० कुलचन्द्र, सा० पाल्हण आदि प्रधान श्रावकों को सारी बात कहसुनाई और श्रीपार्श्वनाथ मन्दिर के दक्षिणस्तम्भ में अधिष्ठायक की मति उत्कीर्ण करने का संकेत किया। श्रावकों ने भी वैसा ही किया, सूरिजी ने बड़े विस्तार से उसकी प्रतिष्ठा कर अधिष्ठायक का नाम "अतिवल" प्रसिद्ध किया, श्रावक लोग अधिष्ठायक की अच्छे अच्छे मिष्टान्नों द्वारा पूजा करने लगे और अतिवल भी उनके मनोवांछित पूर्ण करने लगा। स्वर्गवास इस प्रकार धर्म प्रभावना करते हुए सूरिजी ने अपना आयु शेप निकट जान कर सं० १२२३ के द्वितीय भाद्रपद कृष्णा १४ को चतुर्विध संघ से क्षमतक्षामणा की और अनशन आराधना के
SR No.010775
Book TitleManidhari Jinchandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShankarraj Shubhaidan Nahta
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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