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________________ मणिधारी श्रीजिनचन्द्रसूरि सवत् १२२१ में सूरिजी सागरपाड़ा पधारे। वहा सा० । गयधर कारित पार्श्वनाथ विधि चैत्य में देवकुलिका की प्रतिष्ठा की। वहा से अजमेर पधार कर स्वर्गीय गुरुदेव श्रीजिनदत्तसूरिजी के स्तूप ' की प्रतिष्ठा की। वहा से क्रमशः विहार करते हुए सूरिजी बब्बेरक पधारे। वहां वा० गुणभद्र २ गणि, अभयचन्द्र, यशचन्द्र, यशोभद्र, देवभद्र और देवभद्र की भार्या को दीक्षा दी गई। आशिका (हाँसी) नगरी में नागदत्त को वाचनाचार्य पद दिया। महावन स्थान के श्री अजितनाथ विधिचेत्य की प्रतिष्टा की। इन्द्रपुर के श्री शान्तिनाथ विधिचत्य के स्वर्ण दण्ड, कलश और ध्वज की प्रतिष्ठा की। तगला ग्राम में वाचक गुणभद्र गणि के पिता महलाल श्रावक के वनवाये हुए श्री अजितनाथ विधिचैत्य की प्रतिष्ठा की। ___ सं० १२२२ में वादली नगर के श्री पार्श्वनाथ मन्दिर में उपर्युक्त महलाल श्रावक कारित स्वर्ण दण्ड, कलश की प्रतिष्ठा की। अम्बिका-मन्दिर के शिखर पर स्वर्ण-कलश की प्रतिष्टा १ सवत् १२३५ में श्रीजिनपतिसरिजी ने इस स्तूप को बड़े विस्तार से पुनः प्रतिष्ठा की थी। २ स० १२४५ में लवणखेटक में श्रीजिनपतिसूरिजी ने इन्हें वाचनाचार्य पद से सुशोभित किया था। इनके पिताका नाम महलाल श्रावक था जिनकी करवाई हुई तगला और चौरसिदा की प्रतिष्ठा का उल्लेख ऊपर आ ही चुका है।
SR No.010775
Book TitleManidhari Jinchandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShankarraj Shubhaidan Nahta
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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