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________________ - अथ श्री संघपट्टका - newAAAAAAAAMAPAAMAMMAmawrammarranww GANAwAARAM.NPAMAARA....hammarh A लिंगधारीनो मार्ग एज जिन मार्ग हो एवी आशंका थाय ने तेनो उत्तर कहे जे, टीकाः-अथ चेति प्रतिकूलपदांतरद्योतकमव्ययं ॥ नन्वतः परमार्थतः तदानमरेऽहन्लार्गधातुके । अयमर्थः ॥ यथाऽ जिमराः प्रचन्नधातुकाः स्ववेषेण राजादिधातक मशक्नुवंतो वेषपरावर्तनेन राजादिकं व्यापादयंति। तथैतेपि गृहस्थवेषेणाहेन्मार्गच्छेदन तथा विधातुमपारयंतो यतिवेषेण विरुद्धप्ररुपणाचेष्टितादिनाऽहन्मार्गमुच्छिदंतीति नवंत्यनिसराः ।। अर्थः-श्रथ च' एटलो विपरीत पक्षांतरने कहेनारो अ. व्यय .ए हेतु माटेनिश्चे परमार्थथी विचारी जोतां ए लिंगधारी अरिहंतना मार्गने घात करनारा . तेमां प्रगटपणे आवो जावार्थ रह्यो जे, जेम राजादिकने बाना मारनारा घातकी पुरुपो ते पोतानो जेवो ने तेवो वेश राखी राजा प्रमुखने मारवा समर्थ नथी थता त्यारे पोतानो वेष पलटी वीजो वेष करी राजादिकने मारेठे तेम आ लिंगधारी पण गृहस्थना वेषवमे अरिहंतलो मार्ग वेदन करवा न समर्थ थया त्यारे यतिनो वेप धारण करी विरून प्ररूपपा करवी; इत्यादि नपायवमे अरिहंतना मार्गनो नच्चेद करे वे माटे ए घातकी . टीका:-ततश्च पुरध्वपुरध्ववर्तिनोरनेदोपचारादित्यमुपन्यासः ॥ अस्मिन् प्राग्वर्णितस्वरूपे घरध्ये कुमार्गे कासएयात् मास्मामी वुमन जमा यस्मिन् कुपथपंक तिदयाध्यवसा.
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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