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________________ - अथ श्री संघपटक Mahammam w wwwwwwwwwwsunn-~ - थशे एवो प्रसंग प्राप्तःथयो. हवे सिद्धांती बिंगधारीउने पूडे ठे जे, जो तमो एम कता हो के, तीर्थनो नछेद थशे तो ते जगोए तमने पुबीए बीए. टीकाः-अथ केन प्रमाणेन जवता तदन्नावो निरणायि। कि प्रत्यक्षण नतानुमानेन अहोस्विदागमेनेति त्रयः कपास्त्रिकूटाचलकूटा इव मंदैर्दुरारोहाप्ररोहंति ॥ तत्र न तावत्प्रत्यदेण अर्वाग्दृशां प्रत्यदेण सर्वत्र तन्नावस्य निर्नेतुमशक्यत्वात्तथात्वे च सर्वसर्वज्ञत्वापत्तेः॥ अर्थः--जे हवे कया प्रमाणे करीने तमोए तीर्थनो उच्छेद थशे एवो निर्णय कयों? शुं प्रत्यक्ष प्रमाणवमे को? अथवा अनुमान प्रमाणवमे कर्यो? के आगस प्रमाणवके कयों? ए प्रकारे त्रण विकल्प उत्पन्न थाय ते त्रिकूटाचल पर्वतनां त्रण शिखर होय नही? एम मंद बुद्धिवालाथी आरोहण न थाय एवा उर्घटले. एटले त्रय विकल्प, समाधान थाय एम नथी, तेमांप्रथम प्रत्यक्ष प्रमाणवमेतमारीवात सिनथीथती, केसजे जेनी दृष्टि अवराएली , एटले जेने अल्प ज्ञान लेते पुरुषोने प्रत्यक्षपणे सर्व जगाए तीर्थनो नछेद थशे एवो निर्णय करवातुं सामथ्र्य नथी ए देतु माटे, ने जो सर्व पदा. र्थनो निर्णय करवानु सामर्थ्य होय तो सर्व लोकने सर्वज्ञपणानी माप्ति थाय ए हेतु माटे एटले प्रत्यक्ष प्रमाणवके आपण जेवाथी तीर्थनो नछेद निर्णय करी शकाय तेम नथी. टीका-ततश्च कनिदेशकालादो तथानृतस्यापि संघस्य सं.
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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