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________________ -g. अथ श्री संघपट्टका - (३३) अर्थ:-त्यारपठी जगतना नाथ श्रीपार्श्वनाथजी गायक लोकोये गान कर्या बता मोटा महिमाए सहित जेम इंश श्रमरावती नगरीमा प्रवेश करे तेम पोतानी नगरी प्रत्ये प्रवेश करता हवा ॥५॥ टीकाः-ततो लोकांतिकैर्देवैः प्रजुरागत्य बोधितः॥ जगवंतं स्वयं मुर्त्य वरीतुं प्रहितैरिव ॥एए॥ अर्थः-त्यार पनी मुक्ति कन्याए पोतानी मेले लगवंतने व रवाने मोकल्या होय ने शुं ? एम लोकांतिक देवताउए आवीने प्र.. जुने बोध कयों ॥ ५५ ॥ टीका:-स्वर्णस्तोमस्य वर्षेण तापनिर्यापणक्षमः ॥ जगत्यास्तर्षमाकर्षन् घनाकृतिरदीक्षत ॥ ६॥ अर्थ:-सोनैयाना समूहना वरसवे करीने लोकना संतापने नाश करवाने समर्थ अने तृष्णानो नाश करता अने मेघना सरखी आकृति जेनी एवा नगवान दिदा लेता हवा. एटले वार्षिक दान श्रापीने दीक्षा लीधी. मेघपदे मेघ सारा जलनी वृष्टिए करीने पृथ्वीना तापने नाश करवामां समर्थ बे ने तरशने मटामनार . ६० टीका:-अथाश्रमपदोद्याने कदाचिदिहरन् प्रनुः ॥ तस्थौ मौनं समास्थाय पानध्यानैकतानधीः ॥ ६१॥ . अर्थः-त्यारपी कोश्क वखत विहार करता श्राश्रमपद नामे उद्यानने विषे, वृद्धि पामता ध्यानने विषे एकतान यश् बुद्धि जेमनी एवा लगवान् मौनपणुं धारश करी उन्ना रहेता हवा. ६१
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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