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________________ - अय श्री संघपट्टकः aademanArrammernamna- Am.. कहे ठे एटले था अमारी कहेली सर्वे वात कल्याण करी, धर्मरुप ठे एम बोले ले ए मोटुं आश्चर्य के. टीका:- तथा यशवहेतुरेव संसारकारणमेव नविना देहिनां जिनमंदिरे जलक्रीमादि ॥ एतमिदनाद्दीपनत्वात् क्रीमामात्रत्वेनातात्विकत्वाच्च संसारवर्द्धनमेव परमेतदपि लि. गिनो धर्मबद्मना स्वावलोकनकुतुहलेन कारयति ॥ अर्थः-वळी ए लिंगधारीओ जे देहधारीओने संसार कारणज ने तेने पण धर्मरुपे स्थापे नेते कहे जे. जे जगवतना मंदिरने विषे जे जलक्रीमादिक करावq ते निश्चे कामर्नु जद्दीपन का रनार ले ए हेतु माटे, ने क्रीमा मात्रपणु ले ए हेतु माटे तात्विक नथी एटलें करवा योग्य नथी, माटे संसार वधारवार्नु कारण हैं - रंतु लिंगधारीओ तेने पण धर्मनु सिप लश्ने पोताने जौवार्नु जे कौतुक ते सारु करावे . टीका-यदाद ॥ श्रृंगैः प्रसूनसमये जलकेलि लीला ॥ मांदोलनं लगवदोकसि देवतानां ॥ धर्म तलालगुमरासमनट्यहासं निर्मापयंत्यदह संस्कृतिहेतुमझाः॥ अर्थः-ते वात कही ते के ए श्रज्ञान लिंगधारीलो धर्मना मिपथी वसंत ऋतुमा पीचकारीयोवमे जलक्रीमा करावे ठे. वळी प्रगवंतना मंदिरने विपे देवताना हिंदोला बंधावे ठे वळी जेसापको
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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