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________________ 4मय श्री संघपट्टका - (५०३) AMAN PAAAAAAAAAAAAmwara - उनु पण मन हिंदोलानी पेठे चंचळ थाय वे ने एमां तात्पर्य तो पूर्वनी पेठे जाणवू जे नाम मात्र जैनी ते सर्व जगाए पसरेला डे ए हेतु माटे श्रा समीप रहेला एम प्रत्यक्ष निर्देश कर्यो ? ननु श्रव्ययनो पक्षमारुप अर्थ ने एटले अमो ए विपरितपणाने सहन करता नथी अथवा पासे रदेला मित्रोतुं संवोधन कहेनारो ननु शब्द जाणवो ए लिंगधारीन तो सर्व प्रकारे जिनमार्गना वैरी एटले जगवंतना मार्गना शत्रु ले पण को प्रकारे जिन मार्गने अनुकूल नथी. टीका:- जैनदर्शनोपदासतदजिमुखवैमुख्यापादनादिना जिनसाशनानुपचयहेतुत्वेन वस्तुतस्तेषां तच्छेदकत्वात् ॥ येपांचापराधेन शशधरकर विशदे नगवलासने लोकोपहासवि. पर्यासादयो दोषाः प्रामुःष्यति तेऽनंतसंसारिणः सिकाते प्रति. पादिता महापापीयस्त्वात् ॥ यमुक्तं ॥ दोसेणजस्त श्रयसो आयासो पवयणेय अग्गहणं ॥ विप्परिणामो अप्पच्चोयकुचाय नुप्पज्जे ।। पवयण मणुपेहंतस्स निबंधस्सतस्स लुचस्स ॥ बहु मोइस्स जगवया संसारोपंतश्रोन्नपिओ ॥ तत इत्येतत्पदमये वृत्तादौ संत्स्यत इति वृत्तध्यार्थः ॥२५॥ अर्थः-नलटा जैन दर्शननु उपहास करावनारा ते ने जे
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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