SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 467
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 49 अब भी संघपट्टक AAMANAwwwnnnwwwmwwmannmanna हित एनो नत्तर आपे ले जे एम तारे न कहेवू. टीकाः-अन्यतीर्थिकपरिग्रहीताईत्प्रतिमानां वंदनादि निषेधेन तस्याप्यागमे जिमत्वात् ॥ कथ मन्यथा सम्यकप्रति पतिसमये श्राकानां नोमे कप्पर अन्नतिथियपरिग्गिहियाणि अरिहंतचेईयाणि वंदित्तए वा नमंसित एवाश्त्यादिना जगवान् । जवाहुस्वामी नगवत्प्रतिकृतीनां बोटिकादि परिगृहीतानां चंदनादिप्रतिषेध मजिदधीता। न ह्यनायतनत्वं विना तत्प्रतिषधानिधान शोनां विति।तस्मा दस्त्यनायतनं सिद्धांतानिहित मिति। अर्थः-केम जे अन्यदर्शनीए ग्रहण करेली जेअरिहंत्तनी प्रतिमा तेनुं वंदनादिक निषेध कहेवे करीने ते अनायतन चैत्यन पण श्रागमने विषे कहेवापणुं ने ए हेतु माटे ने जो एम न होय तो समकित अंगिकार करवाने समे श्रावकने 'नोकप्प' इत्यादि एटसे अन्यदर्शनीए ग्रहण करेलां एवां जे अरिहंतनों चैत्य ते वं. दन करवां तथा नमस्कार करवांनथी कल्पता इत्यादि वचने करी. ने नगवान् श्रीनप्रवाहु स्वामि वोटिकादिक अन्यदर्शनी तेमणे ग्रहण करेलां जे चैत्य तेमनुं वंदनादिक ते प्रत्ये निषेध केम कहेत नज कहेत. माटे जो अनायतन चैत्य नज होय तो ते चैत्यना वंदनादिकनो निषेध कर्यो ते न शोन्नत माटे श्रनायतन एटले श्रवंदनीक एबुं चैत्य सिद्धांतमांज कहे . टीका-नुक्ते ष्वेवांतनावा नैतत्पृथगस्ती तिचेन्न तदनावात् तथाहि न ताव नित्यचेत्येऽस्यांत वःकृतकत्वेन तदनावानुपपत्तेः । विमानजवनसनातनशिलोचयादिष्वेव च
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy