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________________ - मय श्री संघपट्टका - MumAram mamiwana अर्थः-जे जगाए श्रावकनी श्रद्धा वधवाने अर्थे सुविहित सूरि पण कदाचित् व्याख्यान करे , 'उसनावि' इत्यादि वचन:वमे ते वात प्रथम प्रतिपादन करी ने ए हेतु माटे ए वात सांजळीने लिंगधारी शंका करे जे आ कछु जे लक्षण तेमांथी कांड पण आ लिंगधारीए निवास करेला चैत्यमां आवे ? त्यारे सुविहित कहे ले जे कांश पण नथी श्रावतुं. टीकाः-तथाहितत्र ॥सर्वदां तर्निवसङ्गिरेव पावस्थादितिः सकलचिंताविधाना छालानां चात्यंतकुदेशनावासितानां विधिपथमात्सर्येण तत्साहायैव प्रत्यवस्थानाद दूरोत्सारित सुविहि.तानां तत्र व्याख्यान विधानं ।। तथा च कथमेतन्निश्राकृतं स्यात् ॥ . अर्थः-तेज कही देखामे जे निरंतर चैत्यमांज निवास करता एवा जे पालथ्थादिक ते चैत्य संबंधि कार्यने करे तेमनी भत्यंत कुदेशनावमे वासित थयेला एटले कुदेशना रूप थयेला जे श्रावक तेनी मध्ये विधि मार्ग साथे मत्सर थकीज जाणेशुं एम वृद्धि पामतो जे अविधि मार्ग तेने प्रवर्ताववाने अर्थे रहा होय ने शुंएवाजे ते लिंगधारी तेथी सुविहितनुं व्याख्यान दूर गयुं तेमाटे ए केम निश्राकृत चैत्य कहेवाय. टीकाः-तस्मादनिश्रानिश्राकृतव्यतिरिक्त लिंगिनिरध्यासितं तृतीयमेत दनायतनानिधानं चैत्य मन्न्युपगंतव्य मिति ॥न. .. नुनित्यनक्तिकृतसाधर्मिकमंगलचैत्यजेदा उचतुर्विध चैत्यं सि. . दाते परिसंख्यायते ॥जक्तिकृतस्य निश्रानिश्राकृतनेदेन है
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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