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________________ (१०) . अथ श्री संघपट्टक hr AnmohnAmArraman AAM AAAAA AANI - तप तपतो ने जगत्प्रजुश्री पार्श्वनाथ प्रत्ये जेनें पूर्व जन्मधीज वेर बंधायुं , एवो ने तापस कर्म करवामां कुशल ने धुतारो एवो कमऊँ नामे तापस घणी पृथ्वीमा जमतो जमतो बाहारना उद्यानमा सप करवाने श्वतो ते पूरीने प्राप्त भयो. ॥६॥७॥ - टीका:-अथा शा स्वनिकुमानि स चतसृ ष्वचीखनत् ॥ गतिस्थानानि चत्वारि खवासाये व शास्वतम् ॥ ७॥ अर्थः-त्यारपड़ी ते तापसे चार दिशाने विषे चार अग्निना कुंभ रच्या ते जाणे निरंतर चार गतिमा पोताने रहेवानां स्थान का होय ने शुं? ॥७॥ ... टीका:-दिदीपिरे ऽनला स्तेषु चारुदारुनिवेशतः ॥ जंघा. ख़ज्वालजटिला स्तत्कषाया श्वोच्छूिताः॥ ए॥ .. ' : .अर्थ:-ते अग्निना कुंमने विषे सुंदर काष्टना प्रवेश थकी चारे अग्नि वेगवंत ज्वालार्जए व्याप्त अतिशे जाज्वल्यमान थया. ते जाणे ते तापसना अग्नि शिखा जेवा चारे कषाय साथे उदय पाम्या होयने शुं? ॥ ए॥ बीकाः-तदंत:स्थः स्वमूर्होर्ध्वयममार्त्तमममसः ॥ चकासे नून मायास्यन् महानरक मध्यगः॥ १०॥ .. अर्थः ते चार अग्निना कुंमनी वच्चे उन्नो रह्यो, ने पोताना मस्तक उपर पाक जे सूर्य मंगल जेने एवो ते तापस पंचाग्नि साधन करती वखंत था प्रकारे सोने बे. ते शोला उपर उत्प्रेक्षा अलंकार कहे जे महा नरक मध्येथीनारकी पुरुष जाणे साक्षात् श्राव्यो होय ने शुं ? ॥ १० ॥
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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