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________________ 8. अथ श्री संघपट्टका - (१९) comimmmmm " स्त्रयोविंशो विबुधाराधितकमः ॥४॥ . : ' अर्थः ते इंश इंशाणीने जेम जयंत नामे. पुत्र बे, तेम ने स्त्री पुरुषने सत्य वक्ता ने देवता जेनां चरण- आराधनं करे , एवा त्रेवीशमा पार्श्वनाथ जिनपुत्र थया. लौकिक शास्त्रमा इंजनो पुत्र जयंत नामे ले. तेनुं देवताना औषध करनार अश्विनी कुमार नामे बे वैद देवता ते लरण पोषण करे , ने देवता ते इंड.पुत्रना पग शेवे ॥४॥ : टीका:-उपेयिवान् कुमारत्वं ततः शक्तिहताहितः॥ स. जवानीहितस्वांतो गमयामास वासरान् ॥५॥ अर्थः-त्यारपती पोतानी शक्तिवते शत्रुनो नाश करनार एवा पार्श्वनाथजी कुमार अवस्थाने पाम्या, ने संसारमा जेनुं चित्त श्रासक्त नथी एवा बता दिवस निर्गमन करे , अन्यशास्त्रमा शीवनो पुत्र स्वामी कार्तिक नामे , तेनुं नाम पण कुमार , ने देवताना सैन्यनो अधीपति ने शक्ति नामना आयुधवते शत्रुनो नाश करे डे, ने पार्वती नामे पोतानी माता तेनुं हित करवामां जेनुं मन एवा अर्थने नासन करनार पद मुकवाथी पार्श्वनाथजीनां शक्ति पराक्रम दयालुता इत्यादि घणा गुण कविए सूचन कर्या ॥५॥ .. टीका:-तप्यमानोऽन्यदा पंचपावकं दुस्तपं तपः ।। जग प्रतुं प्रतिप्राच्य जन्मसंतृतविग्रहः ॥६॥ उव/मुवीं परित्राम्यन् कर्मठ कमवः शवः॥ तप्यसुर्बहि रुद्याने तां पुरं प्राप. तापसः॥७॥ युग्मम् . . . अर्थः-एक दिवस पांच अग्नि जेमा रह्या ले, एवं आकर
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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