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________________ (३४) * अथ श्री संघटक Wwww wwwwwwwwwwwwwww wwwwwwranamama । अर्थः-ए विनाना सर्व पण क्रिया कलापने अंध तथा मू. कनो सरखापणानी प्राप्ति थाय जे ए हेतु माटे त्यार पड़ी गुरु अक्ति 'इत्यादि पदनो इंच समास करवो. वा अव्ययनो समुच्चयने विषे अर्थ करवो ए सर्व जिनगृह आदिक तथा दान आदिक तथा गुरु नक्ति श्रादिक अनुष्टान जे वहुमान सहित श्रादर कर्यु ते श्रा प्रवचनने विषे अनिमत नथी. एटले मानवा योग्य नथी. एम संबं. ध करवो शाथी के ते सर्व कुमत जे अन्य दर्शनी तेमना शास्त्रमा कह्यो जे क्रियानो समूह श्राफ तथा चंज सूर्यतुं ग्रहण तथा संक्राति तथा माघ माला इत्यादिकनुंजे प्रतिपादन तेने कुमत कहीए. टीकाः-कुगुरु रुत्सूत्रदेशनाकरण प्रवणः सन्मार्गदूषणपरायणो धार्मिक जनकुमो पञ्चतत्परःसुखलोल तयायतिक्रिया विकलोजन विप्रलिप्सयाःकरक्रिया निष्टोपिवा सानपूजा - ख्यातिकामः कुत्सिताचार्यः । कुग्राहः सिद्धांतबाह्य स्वमति कल्पितस्वान्युपेतासत्पदार्थसमर्थनानुष्टानगोचरो मानसोनि निवेशः॥ - अर्थः-ने कुगुरु जे नत्सूत्र देशना करवामां तत्पर ने सारा मार्गने दोष पमानवाने तत्पर ने धर्मवंत लोकने कुछ उपजव करवामां तत्पर ने विषय सुखनी लालचे यतिक्रियाथी भ्रष्ट थयेसो ने लोकने उगवानी श्चाए पुस्कर किया करे ये तो पण साज तया प्रजा तथा पोतानी ख्याती तेमनी श्वावाळो ते'कुगुरु कहीए, कुत्सित श्राचार्य कहीए, ने कुग्राहं ते सिद्धांतनी वाह्य एटले सिकांतथी नखटो पोतानी बुद्धिए कल्पना कों ने अंगीकार कयों
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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