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________________ अय श्री सघपट्टका अथ के दोषमनिप्रेत्य सिद्धांते रात्रिस्नात्रनिवारणमिति दोषप्रदर्शनाय हेतुगर्न विशेषणत्रयं मज्जनस्याह । अर्थः-विधिरहितं एटले सिद्धांतमा जे अनुक्रम कह्यो तेथी विपरीत पूर्वे कहेलां विशेषणने सार्थक करवाने रात्रिने विषे स्नात्र करे ने एटलो अर्थ थयो. विधि रहित ने रात्रि विषे जे पं. रमात्मानुं स्नान कर ते पूर्वे कर्यु ए प्रकारनुं . एटले सिद्धांतने विषे रात्रिमा जिननुं स्नान निवारण कयु डे ए हेतु माटे रात्रिने विषे स्नान करनारने केम पाप न होय एटलो अर्थ के हवे शो दोष अंगिकार करीने सिद्धांतमां रात्रिने विषे स्नात्र करवानुं निवारण कर्यु ले ए दोष देखामवाने हेतुगनित ए स्नात्रनां त्रण वि. शेषण कहे . टीका:-इटावाप्ति इत्यादि ॥ श्ष्टाया वहनाया मज्जन दर्शनमिषेणागताया अवाप्ति मेंलकस्तया तुष्टा निःशंकमत्राद्य नः सुरतलीला प्रवस्य॑तीतिधिया मुदिता विटा वेश्यापतयः नटा नाटकालिनयनादिकलोपजीविनः जटाः शस्त्रादिकलाजी• विनः चेटका मासादिनियमितवृत्तिग्राहिणः एषां पेटकं समुदाय स्तेनाकुलं दुनितं प्रेयसीप्राप्त्या 'सात्विकनावेनाकुलीकृत · विटादिजना कीर्णत्वात् मज्जनमप्युपचारादाकुलं ॥ नटा नाटकासाला प्रवत्य॑तीतितया उष्टा नि अर्थः जे ए स्नात्र के जे जेमां पोताने वचन एवी जे स्त्री तेनी प्राप्ति थाय एटले स्नान देखवानुं मिष करीने श्रावेली जे पोतानी वांछित स्त्री तेनो समागम तेणे करीने राजी थयेला
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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