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________________ - अथ श्री संघपटकः - AM पालण पोषण करीने कांइ आ जननी वृद्धि पमामी नथी के जेथी एनुं अवळू कहेवू पण माथे नपामी ले ए प्रकारे श्रागल्यां पदने विषे पण आशंका करीने योजना करवी. वर्द्धित शब्दनो ए अर्थडे जे न मळेली वस्तुनो योग करवो ने मळेली वस्तुनी रक्षा करवी ए रुप जे योग केम इत्यादिकनुं जे करवू तेणे करीने जे शरीरखें पोषण करई ते. टीका:-नच क्रीतो मूल्यदानेनाऽन्यस्माद्गृहीतः ॥ श्रधमों नच उत्तमर्पसकाशाउकारादिप्रयोगेणाऽर्थ गृहीतोऽधमर्णः ॥ अत्रच वैरितिकर्तृतया संबंधानुपपत्तेषामिति संबंधविवक्षया यबब्दो योज्यः ॥ अर्थवशाहिजक्तिपरिणाम इतिवचनात् ॥ तेन येषां लिंगिनामयंजनोऽधमोर्थधारयितान जवति एवमुत्तरत्रापि यथासंचवं येषामिति संबंधनीयम् ॥ अर्थः-वळी लिंगधारीए आ श्रावक कोई पासेथी मूख आपीने वेचातो लीधो नथी जे एनुं बोट्युं माथे उपामे वळी आ जन एटले श्रावक लोक ए लिंगधारीऊनो देवादार नथी जे पोतानी श्राज्ञा पराणे पळावे.धनादि वस्तु आपनार जे पुरुष ते उत्तमर्षक हीए. ने जे धनादि वस्तुनो लेनार पुरुष ते अधर्मण कहीए. माटे उत्तमर्ण पासेथी उधार प्रमुख प्रयोगे करीने अर्थनो गृहण करनार एटले अधर्मण थयेलो आ जन नथी.श्रा जगाए व्याकरणादि वि. चार जे आ जगाए यैः ए प्रकारर्नु कर्ता पद जे तेणे करीने संबंधनी :सिकि.नथी थती माटे येषां ए प्रकारना संबंधनी केहेवानी शाए करीते यत् शब्दनी योजना करवी. केम जे अर्थता बरामी बिना
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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