SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 290
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२६४) 8. अथ श्री संघपक - www wwwwwwcom दीआदि जे आसन ते गणावेलां माटे तेने प्रवचननी प्रजावनात अंगपणुं नथी ए हेतु माटे. . टीका-यदाह ।। अप्पमिलहियदूसे तूली उवहाणगं चना यद्या॥ गंऽवहाणालिंगिणि मसूरए चेव पोत्तमएपाहविकोय विवावारनवय अतहया दाढगालीय ॥ उप्पमिले हियदूसे एवं बीय नवे पणगं ॥ अर्थ ते शास्त्र वचन आप्रकारनां ने जे, . टीका:-अत्रहि तूत्युपधानगब्दिकाप्रावरणपुष्पपटादयोऽप्रत्युपेक्ष्यतया यतीनाम संयमहेतुत्वेनानु पादेयतयोपन्यस्ताः ॥नवंतस्तु तूल्युपधान गब्दिकादीन्येव नगवसिद्धांतमात्सर्येणे व:हवादविरतमुपजुंजानाःप्रवचनमालित्यमानयंत उपक्षज्यंत इत्यहोमहामोहमदिरा मदयति विदुषोपि ॥ अर्थः-श्रा शास्त्र वचनने विषे तलाइ, शिकां, गादी, र. जाइ, पुष्पपट इत्यादिकनी पमिलेहण न थाय तथा उखे एवा का रणथी यतिने असंयमनुं कारण ले माटे न ग्रहण करवापणे थाप्यां बे ने तमोतो तलाइ, श्रोशिका, गादी इत्यादिक नगवंतना सिद्धांतनी साथे मत्सर पणेज एटले विपरीतपणेज हगत्कारे निरंतर उपलोग करो बो; तेथी प्रवचन- मलीनपणुं करता देखाउँ बगे माटे श्रहो एतो मोटा मोह रुपी मदीरा विद्यानने पण एटले जाण पुरुपने पण मंद करें .
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy